"आश्वस्त / संवर्त / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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− | या सतराहा | + | <poem> |
− | किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं, | + | चैराहा हो |
− | दिग्भ्रम होने का | + | या सतराहा |
− | भय मन पर आरूढ़ नहीं। | + | किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं, |
+ | दिग्भ्रम होने का | ||
+ | भय मन पर आरूढ़ नहीं। | ||
− | माना | + | माना |
− | पथ से इतनी पहचान नहीं है, | + | पथ से इतनी पहचान नहीं है, |
− | मंज़िल तक हो आने का | + | मंज़िल तक हो आने का |
− | परिज्ञान नहीं है, | + | परिज्ञान नहीं है, |
− | पर, | + | पर, |
− | लक्ष्य-दृष्टि है साफ़ अगर | + | लक्ष्य-दृष्टि है साफ़ अगर |
− | तो पढ़ लेगी | + | तो पढ़ लेगी |
− | पथ पर अंकित — | + | पथ पर अंकित — |
− | क्रोशों की संख्या, | + | क्रोशों की संख्या, |
− | उत्तर-दक्षिण | + | उत्तर-दक्षिण |
− | पूरब-पश्चिम | + | पूरब-पश्चिम |
− | स्थित | + | स्थित |
− | नगरों के नाम सभी। | + | नगरों के नाम सभी। |
− | फिर — | + | फिर — |
− | चैराहों-सतराहों से | + | चैराहों-सतराहों से |
− | आगे बढ़ना | + | आगे बढ़ना |
− | नहीं कठिन, | + | नहीं कठिन, |
− | फिर — | + | फिर — |
− | चैराहों-सतराहों पर | + | चैराहों-सतराहों पर |
− | होना नहीं मलिन। | + | होना नहीं मलिन। |
− | नाना मत, | + | नाना मत, |
− | नाना शासन-पद्धतियाँ, | + | नाना शासन-पद्धतियाँ, |
− | अगणित राहें, | + | अगणित राहें, |
− | अगणित नारे-झण्डे, | + | अगणित नारे-झण्डे, |
− | अनगिनती | + | अनगिनती |
− | आपस में तीव्र विरोधी आवाजें, | + | आपस में तीव्र विरोधी आवाजें, |
− | पर, | + | पर, |
− | यदि युग को पढ़ सकने की | + | यदि युग को पढ़ सकने की |
− | क्षमता है, | + | क्षमता है, |
− | यदि जन-मन की धड़कन से | + | यदि जन-मन की धड़कन से |
− | निज अन्तर की समता है, | + | निज अन्तर की समता है, |
− | तो असमंजस का प्रश्न न होगा, | + | तो असमंजस का प्रश्न न होगा, |
− | निष्ठा निर्मूल न होगी, | + | निष्ठा निर्मूल न होगी, |
− | चैराहों-सतराहों के मोड़ों से | + | चैराहों-सतराहों के मोड़ों से |
− | पथ भूल न होगी !< | + | पथ भूल न होगी ! |
+ | </poem> |
14:27, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
चैराहा हो
या सतराहा
किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं,
दिग्भ्रम होने का
भय मन पर आरूढ़ नहीं।
माना
पथ से इतनी पहचान नहीं है,
मंज़िल तक हो आने का
परिज्ञान नहीं है,
पर,
लक्ष्य-दृष्टि है साफ़ अगर
तो पढ़ लेगी
पथ पर अंकित —
क्रोशों की संख्या,
उत्तर-दक्षिण
पूरब-पश्चिम
स्थित
नगरों के नाम सभी।
फिर —
चैराहों-सतराहों से
आगे बढ़ना
नहीं कठिन,
फिर —
चैराहों-सतराहों पर
होना नहीं मलिन।
नाना मत,
नाना शासन-पद्धतियाँ,
अगणित राहें,
अगणित नारे-झण्डे,
अनगिनती
आपस में तीव्र विरोधी आवाजें,
पर,
यदि युग को पढ़ सकने की
क्षमता है,
यदि जन-मन की धड़कन से
निज अन्तर की समता है,
तो असमंजस का प्रश्न न होगा,
निष्ठा निर्मूल न होगी,
चैराहों-सतराहों के मोड़ों से
पथ भूल न होगी !