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रोज़ होती है यहाँ हलचल कोई
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टूटता है आईना हर पल कोई
  
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राह भटके इन परिन्दों के लिए
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ढूँढ़ना होगा नया जंगल कोई
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नाच उठतीं क़ागज़ों की कश्तियाँ
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आ गया होता इधर बादल कोई
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देश तो ये अब जलेगा शर्तिया
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क्या करेगी आपकी दमकल कोई
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बेवजह मत घूमिए यूँ 'अश्वघोष'
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फाँस लेगी आपको दलदल कोई
 
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11:44, 3 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

रोज़ होती है यहाँ हलचल कोई
टूटता है आईना हर पल कोई

राह भटके इन परिन्दों के लिए
ढूँढ़ना होगा नया जंगल कोई

नाच उठतीं क़ागज़ों की कश्तियाँ
आ गया होता इधर बादल कोई

देश तो ये अब जलेगा शर्तिया
क्या करेगी आपकी दमकल कोई

बेवजह मत घूमिए यूँ 'अश्वघोष'
फाँस लेगी आपको दलदल कोई