"दिल्ली-एक / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
Mukesh Jain (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: '''दिल्ली : एक''' दस लोंगों का परिवार मारूति डीलक्स में ठुँसा जा रहा थ…) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=मंगलेश डबराल | ||
+ | |संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल | ||
+ | }} | ||
+ | <poem> | ||
'''दिल्ली : एक''' | '''दिल्ली : एक''' | ||
− | दस | + | दस लोगों का परिवार मारूति डीलक्स में ठुँसा जा रहा था. दोस्त से |
− | गहन चर्चा में लीन चित्रकार सामने से आती बस देखकर सहसा लपक | + | गहन चर्चा में लीन चित्रकार सामने से आती बस देखकर सहसा लपक |
− | पड़ा. कोने में एक औरत अपने बच्चे को पीट रही थी. एक नौजवान | + | पड़ा. कोने में एक औरत अपने बच्चे को पीट रही थी. एक नौजवान |
खुलेआम एक युवती से प्रेम करने का स्वांग करता था. | खुलेआम एक युवती से प्रेम करने का स्वांग करता था. | ||
− | एक आदमी कुहनियों से अगल-बगल धक्के मारकर काफ़ी आगे | + | एक आदमी कुहनियों से अगल-बगल धक्के मारकर काफ़ी आगे |
− | निकल गया. कंप्युटर के सामने बैठा दिल का मरीज़ सोचता था देश | + | निकल गया. कंप्युटर के सामने बैठा दिल का मरीज़ सोचता था देश |
− | का इलाज कैसे करूँ. आलीशान बाज़ार के पिछवाड़े एक वीर पुरुष | + | का इलाज कैसे करूँ. आलीशान बाज़ार के पिछवाड़े एक वीर पुरुष |
− | रो रहा था जिसे वीरता की बीमारी थी. एक सफल आदमी सफलता | + | रो रहा था जिसे वीरता की बीमारी थी. एक सफल आदमी सफलता |
− | के गुप्त रोग का शिकार था. एक प्रसिद्ध अत्याचारी विश्च पुस्तक मेले | + | के गुप्त रोग का शिकार था. एक प्रसिद्ध अत्याचारी विश्च पुस्तक मेले |
में हँसता हुआ घूम रहा था. | में हँसता हुआ घूम रहा था. | ||
− | इस शहर में दिखाई देते हैं विचित्र लोग. मेरे शत्रुओं से मिलते हैं उनके | + | इस शहर में दिखाई देते हैं विचित्र लोग. मेरे शत्रुओं से मिलते हैं उनके |
− | चेहरे. आरामदेह कारों में बैठकर वे जाते हैं इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय | + | चेहरे. आरामदेह कारों में बैठकर वे जाते हैं इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय |
हवाई अड्डे की ओर. | हवाई अड्डे की ओर. | ||
१९८८ | १९८८ | ||
+ | </poem> |
18:32, 27 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
दिल्ली : एक
दस लोगों का परिवार मारूति डीलक्स में ठुँसा जा रहा था. दोस्त से
गहन चर्चा में लीन चित्रकार सामने से आती बस देखकर सहसा लपक
पड़ा. कोने में एक औरत अपने बच्चे को पीट रही थी. एक नौजवान
खुलेआम एक युवती से प्रेम करने का स्वांग करता था.
एक आदमी कुहनियों से अगल-बगल धक्के मारकर काफ़ी आगे
निकल गया. कंप्युटर के सामने बैठा दिल का मरीज़ सोचता था देश
का इलाज कैसे करूँ. आलीशान बाज़ार के पिछवाड़े एक वीर पुरुष
रो रहा था जिसे वीरता की बीमारी थी. एक सफल आदमी सफलता
के गुप्त रोग का शिकार था. एक प्रसिद्ध अत्याचारी विश्च पुस्तक मेले
में हँसता हुआ घूम रहा था.
इस शहर में दिखाई देते हैं विचित्र लोग. मेरे शत्रुओं से मिलते हैं उनके
चेहरे. आरामदेह कारों में बैठकर वे जाते हैं इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय
हवाई अड्डे की ओर.
१९८८