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ऐ लड़की,
कैसे चली आई थी तुम थामकर मेरा हाथक्यों किया था फैसला तुमनेमेरे पीछे विदा-वेला साथ अपने गठबंधन का।जानकर मेरे बारे में हँसते-मुस्कराते -माँ-बाप, भाई-बहन, बंधु-बांधव, सखी-सहेलियाँ,पास-पड़ोस मुझसे मिलकर और गाँव-जवारबातें कर थोड़ी–सीज़बर्दस्ती रोने की करते हुएज़बर्दस्त कोशिश के साथ प्रतीक्षारत क्या सचमुच परख लिया थातुमने मुझेदान की गई बछिया पूरा का करुण रुदन सुनने को।पूरा।बेटी-विदाई के अवसर पर होने वालेपारंपरिक, बहु-प्रचलित और सर्वापेक्षित विलाप कोक्या सोचकररचाई थी तुमने अपने होंठों की मुस्कान हाथों में समेटकरमेंहदीकिस भरोसे पर जज़्ब किया लगवाया था तुमने अपने भीतर?किस बदन पर विश्वास था? तुम्हें सबसे ज़्यादा?अपनी प्रार्थनाओं पर,हल्दी का उबटनडाली थी गले में वरमालासात फेरों के साथ लिया था मुझसे लिए गए वादासात वचनों पर,का।हथेली पर गहरे लाल उग आई मेंहई परचौक–चौबारेअथवा मुझे परखकर लिए गए अपने फ़ैसले परऔर पूजकर कुलदेव–देवियाँरखकर व्रत–उपवास औरमन्नतें माँगकर तीर्थों की कष्टपूर्ण यात्राओं मेंगुहार लगाते हुए जिस वर कीसैकड़ों बार की थी तुमने कामनामैं क्या वही हूँ?
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