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"आज भी / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर
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+ | सुनता हूँ आकाश के गान | ||
+ | और फूलों के शब्द । | ||
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15:47, 10 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
मैंने तुम्हारा प्यार खोया
पर
प्रेरणा ने कहा - उठो, चलो !
तुम्हारा साथ छूट गया
वह नगर, गली, चौक सब
गुजरे वक़्त की बात हुए
फिर एक समंदर था जीवन
दुख की सख़्त चट्टानें
सुनसान हवाओं में
कगार पर टूटती लहरें
और एक लड़की
जादू में, मोह में, तिलस्म में खींचती
और मैं सचमुच उसे चाहता
खुद को छलता
पर जीवन ने कहा - आगे बढ़ो
तुम्हारे बाद मैंने बारम्बार खोया
तुम्हें न जाने किस - किस छवि में
टूटा, हताश हुआ
पर हर बार
आखिर में एक आवाज़
खड़ा कर देती रही अपने पावों पर
आज भी
भरा है मेरा दिल
प्यार और प्रेरणा से
सुनता हूँ आकाश के गान
और फूलों के शब्द ।