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"स्वरों का समर्पण / श्रीकांत वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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डब्डब अँधेरे में, समय की नदी में
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डबडब अँधेरे में, समय की नदी में
 
अपने-अपने दिये सिरा दो;
 
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शायद कोई दिया क्षितिज तक जा,
 
शायद कोई दिया क्षितिज तक जा,

20:36, 14 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

डबडब अँधेरे में, समय की नदी में
अपने-अपने दिये सिरा दो;
शायद कोई दिया क्षितिज तक जा,
सूरज बन जाए!!

हरसिंगार जैसे यदि चुए कहीं तारे,
अगर कहीं शीश झुका
बैठे हों मेड़ों पर
पंथी पथहारे,
अगर किसी घाटी भटकी हों छायाएँ,
अगर किसी मस्तक पर
जर्जर हों जीवन की
त्रिपथगा ऋचाएँ;

पीड़ा की यात्रा के ओ पूरब-यात्री!
अपनी यह नन्हीं-सी आस्था तिरा दो
शायद यह आस्था किसी प्रिय को
तट तक ले जाए!!