|
|
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | {{KKGlobal}}
| |
− | {{KKRachna
| |
− | |रचनाकार=किशन सरोज
| |
− | }}
| |
− | <poem>
| |
| | | |
− | धर गए मेहंदी रचे दो हाथ जल में दीप
| |
− | जन्म-जन्मों ताल-सा हिलता रहा मन
| |
− |
| |
− | बांचते हम रह गए अंतर्कथा
| |
− | स्वर्णकेशा गीत वधुओं की व्यथा
| |
− | ले गया चुन कर कँवल कोई हठी युवराज
| |
− | देर तक शैवाल-सा हिलता रहा मन
| |
− |
| |
− | जंगलों का दुःख तटों की त्रासदी
| |
− | भूल सुख से सो गयी कोई नदी
| |
− | थक गयी लड़ती हवाओं से अभागी नाव
| |
− | और झीने पाल-सा हिलता रहा मन
| |
− |
| |
− | तुम गए क्या जग हुआ अंधा कुआँ
| |
− | रेल छूटी रह गया केवल धुआँ
| |
− | गुनगुनाते हम भरी आँखों फिरे सब रात
| |
− | हाथ के रूमाल-सा हिलता रहा मन
| |
− |
| |
− | </poem>
| |