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रहो सावधान / कुमार सुरेश

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[[रहो सावधान]]{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita‎}}<poem>वेश एक-सा
वस्त्र समान
बोली एक -सी
रहना एक साथ
पहला दिशाबोधक संकेत
दूसरा सर्वग्रासी दलदल
जिसमें धंस धँस जाता है
कर्ण का भी रथ
मृत्यु ही मुक्त कर पाती है तब
पहला अन्न ब्रह्मा ब्रह्म
दूसरा सारे खेत को
चौपट करता हुआ विषैला बीज
सावधान मनु !
परखो ध्यान से
ठिठको वहां वहाँ
जहाँ ख़त्म हो सीमा
आत्म -सम्मान की
आरम्भ होती हो जहाँ
भूमि अहंकार की
मनुष्यता या पशुता की ओर
यात्रा की
 
</poem>
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