"मिट्टी दा बावा (1) / पंजाबी" के अवतरणों में अंतर
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--इस लोकगीत में एक पत्नी अपने परदेसी पति को याद कर रही है। अभी उसके कोई संतान भी नहीं है तो वो खुद को बहुत अकेला महसूस करती है।-- | --इस लोकगीत में एक पत्नी अपने परदेसी पति को याद कर रही है। अभी उसके कोई संतान भी नहीं है तो वो खुद को बहुत अकेला महसूस करती है।-- | ||
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− | + | |width="300" bgcolor="white"|<poem>मिटटी दा मैं बावा बनाणीआं | |
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− | <poem>मिटटी दा मैं बावा बनाणीआं | + | |
उत्ते चा दिन्नी आं खेसी | उत्ते चा दिन्नी आं खेसी | ||
वतनां वाले माण करन | वतनां वाले माण करन | ||
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सानूं गल नाल लाजा वे | सानूं गल नाल लाजा वे | ||
मेरा सोहणा माही, आजा वे | मेरा सोहणा माही, आजा वे | ||
+ | </poem>||width="300" bgcolor="CEF0FF"|<poem>मिटटी से मैं बच्चा बनाती हूं | ||
+ | उसे कंबल उढ़ाती हूं | ||
+ | जिनके पति साथ हैं, वो खुश हों | ||
+ | मेरा पति तो परदेसी है | ||
+ | मेरे सुँदर माही, आजा वे | ||
+ | |||
+ | घर के सामने बेरी का पेड़ लगाती हूँ | ||
+ | हर घर में हमारी बातें होती हैं | ||
+ | आकर अपना चेहरा दिखा जाओ | ||
+ | मेरे सुँदर माही, आजा वे | ||
+ | |||
+ | घर के सामने पानी बहता है | ||
+ | मेरा अकेले मन नहीं लगता | ||
+ | मुझे सीने से लगा लो | ||
+ | मेरे सुँदर माही, आजा वे | ||
</poem> | </poem> | ||
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09:51, 28 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
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--इस लोकगीत में एक पत्नी अपने परदेसी पति को याद कर रही है। अभी उसके कोई संतान भी नहीं है तो वो खुद को बहुत अकेला महसूस करती है।--
मिटटी दा मैं बावा बनाणीआं |
मिटटी से मैं बच्चा बनाती हूं |