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[[सड़क और जूतियाँ / {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=संध्या पेडण॓कर]]पेडणेकर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<Poempoem>
कमसिन कम्मो ने
बुढाती निम्मो के गले में
बाहें बाँहें डाल कहा, 'आखिरआख़िर.....
उसने मुझे रख ही लिया!!!'
झटके से उसे अपने से
अलाग अलग कर निम्मो बोली,
'मुए को रसभरी ककड़ी
मुफ्त की मिली.......'
कम्मो की सपनीली आँखों ने कहा,
'मैं उससे प्रेम करती हूँ.... और...
मेरा प्रेम प्रतिदान नहीं मांगता..माँगता...'
निम्मो बोली, ' सही है लेकिन,
दुनिया तो तुझे रांड ही कहेगी,
तू कभी उसकी बीवी नहीं बनेगी
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