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"चालीस पार प्रेम-1 / कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर

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प्रेम के हस्ताक्षर वही हैं चिरपरिचित  
 
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पर प्रेम  
 
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सारा संसार उसमें समां सकता है  
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यह समय है  
 
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प्रेम कि पीड़ा को जानने का  
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आग के दरिया से तैर जाने का  
 
आग के दरिया से तैर जाने का  
प्रेम कि आरी से तराशे जाकर हीरा बनाने का  
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प्रेम की आरी से तराशे जाकर हीरा बनाने का  
  
 
प्रेम तो गहना है  
 
प्रेम तो गहना है  

16:44, 22 सितम्बर 2021 के समय का अवतरण

समय के हस्ताक्षर
चेहरे कि रेखाओं में दिखने लगे हैं लेकिन
प्रेम के हस्ताक्षर वही हैं चिरपरिचित
वही लड़कपन-सी हुलस और बेकरारी
लौट आई है
रोमांच यह कोरा ही है

नए प्रेम में खुल रहे हो तुम
मूल तक
वही संकोच और रोमांच
वही नशा फिर से
कहते हो तुम
प्रेम क्या किसी एक
का पर्यायवाची हो सकता है
एक व्यक्ति से काम कि तुष्टि हो जाए
पर प्रेम
वह तो जब विस्तृत होता है
सारा संसार उसमें समा सकता है

यह समय है
प्रेम की पीड़ा को जानने का
आग के दरिया से तैर जाने का
प्रेम की आरी से तराशे जाकर हीरा बनाने का

प्रेम तो गहना है
यह गहना फबता भी खूब है
मेरे दोस्त !
इतना कि आदमी हर बार नया हो जाता है.