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भूख इन्सान के रिश्तों को मिटा देती है / मासूम गाज़ियाबादी
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20:11, 13 मार्च 2010
<poem>
भूख इन्सान के रिश्तों को मिटा देती है।
करके
न्ण्गा
नंगा
ये सरे आम नचा देती है।।
आप इन्सानी
जफ़ओं
जफ़ाओं
का गिला करते हैं।
रुह भी ज़िस्म को इक रोज़ दग़ा देती है।।
अनिल जनविजय
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