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"क्रांतिकारियों से / कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर

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आक्रोशित क्यों रहना चाहते हो ?
 
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दुखी रहना तुमने  
 
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हवाओं का गाना, फूलों का मुस्कुराना  
 
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तितलियों का इठलाना  
 
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कैसे गुजर जाता है  
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तुम्हारी संवेदनाओं को छुए बगैर
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बच्चों कि मुस्कराहट  
 
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कैसे बची रह जाती है  
 
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तुम्हारी दृष्टि में बसे बगैर
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तुम्हें उनके दुखों के प्रति  
 
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उनकी बीमारियाँ  
 
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कैसे छुपी रहती हैं  
 
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तुम्हारी क्रांति दृष्टि से  
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तुम्हारे पास कुछ प्रतीक हैं  
 
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विरोध के लिए  
 
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लेकिन इन्ही प्रतीकों में  
 
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तुम्हारी कैद तुम्हें  
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दिखाई क्यों नहीं देती है ?
 
दिखाई क्यों नहीं देती है ?
 
और बंधु यह क्रांति उसी आदमी के  
 
और बंधु यह क्रांति उसी आदमी के  

00:39, 7 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

बंधु, तुम हर समय
आक्रोशित क्यों रहना चाहते हो ?
दुखी रहना तुमने
फैशन कि तरह ओढ़ रखा है
जब तुम आक्रोश कि भाषा में बातें करते हो
तब दिखाई देती हैं बंदूकें
उगी हुई तुम्हारे दिमाग में
सुरंगे भी बिछा रखी हैं तुमने ह्रदय में
पलीतों के इंतज़ार में

तुम्हे खुद के सुखों के प्रति
निकट दृष्टिदोष हो गया है
हवाओं का गाना, फूलों का मुस्कुराना
तितलियों का इठलाना
कैसे गुज़र जाता है
तुम्हारी संवेदनाओं को छुए बग़ैर
बच्चों कि मुस्कराहट
कैसे बची रह जाती है
तुम्हारी दृष्टि में बसे बग़ैर

तुम्हें उनके दुखों के प्रति
दूरदृष्टि दोष हो गया है
उनके भय, उनके आतंक,
उनकी बीमारियाँ
कैसे छुपी रहती हैं
तुम्हारी क्रांति-दृष्टि से

तुम्हारे पास कुछ प्रतीक हैं
विरोध के लिए
लेकिन इन्ही प्रतीकों में
तुम्हारी क़ैद तुम्हें
दिखाई क्यों नहीं देती है ?
और बंधु यह क्रांति उसी आदमी के
रक्त से भीगना क्यों चाहती है
जिसके लिए
तुम उसे करना चाहते हो ?