"इंसान ही था वह / अशोक तिवारी" के अवतरणों में अंतर
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एक इंसान ही था वह | एक इंसान ही था वह | ||
हमारे बीच | हमारे बीच | ||
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गुस्सा करते हुए | गुस्सा करते हुए | ||
हर उस बात पर | हर उस बात पर | ||
− | जो हो आदमीयत के | + | जो हो आदमीयत के खिलाफ़ |
− | भाईचारे के | + | भाईचारे के खिलाफ़ |
इंसान ही था वह | इंसान ही था वह | ||
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एक झील की तरह | एक झील की तरह | ||
बहता हुआ मगर | बहता हुआ मगर | ||
− | + | ऊँचे झरने और | |
उद्दाम वेग से बहने वाली | उद्दाम वेग से बहने वाली | ||
नदी की तरह | नदी की तरह | ||
पहचानते हुए | पहचानते हुए | ||
− | समय की | + | समय की नब्ज़़ को |
भरते हुए मुठ्ठी में | भरते हुए मुठ्ठी में | ||
ज़माने की तपिश | ज़माने की तपिश | ||
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करके गया अभिव्यक्त | करके गया अभिव्यक्त | ||
नुक्कड़-नुक्कड़ | नुक्कड़-नुक्कड़ | ||
− | + | साफ़गोई और बेबाकीपन से | |
खुलेपन से जो भरता था | खुलेपन से जो भरता था | ||
− | अपनी | + | अपनी मज़बूत बाँहों में |
हमख्याल और हर ज़रुरतमंद को | हमख्याल और हर ज़रुरतमंद को | ||
एक इंसान ही की तरह | एक इंसान ही की तरह | ||
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हमारी ही तरह | हमारी ही तरह | ||
हमारे आसपास | हमारे आसपास | ||
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00:36, 28 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
सफ़दर हाश्मी के लिए
एक इंसान ही था वह
हमारे बीच
हमारी ही तरह
हँसते हुए
गुनगुनाते हुए
लगाते हुए ठहाके
धकेलते हुए आसपास की हवा को
हाथ फिराते हुए बालों में
अपनी ही अदा में
गुदगुदाते हुए पलों को
बिखेरते हुए माहौल में मुस्कराहट
गुस्सा करते हुए
हर उस बात पर
जो हो आदमीयत के खिलाफ़
भाईचारे के खिलाफ़
इंसान ही था वह
हमारे बीच
हमारी ही तरह
ठहरा हुआ था जो
एक झील की तरह
बहता हुआ मगर
ऊँचे झरने और
उद्दाम वेग से बहने वाली
नदी की तरह
पहचानते हुए
समय की नब्ज़़ को
भरते हुए मुठ्ठी में
ज़माने की तपिश
एक इंसान ही था वह
हमारे बीच
हमारी ही तरह
संस्कृति के कितने ही मायनों को
करके गया अभिव्यक्त
नुक्कड़-नुक्कड़
साफ़गोई और बेबाकीपन से
खुलेपन से जो भरता था
अपनी मज़बूत बाँहों में
हमख्याल और हर ज़रुरतमंद को
एक इंसान ही की तरह
एक इंसान ही था वह
हमारे बीच
हमारी ही तरह
देखता हुआ
एक सर्वहारा के सपने को
महसूस करते हुए
पीड़ित की पीड़ा को
अपने अन्दर कहीं गहरे में
अपने सपनों में
रखते हुए एक बुनियाद मजबूती के साथ
थपथपाता रहा जो निराशा के पलों में
हमारे अपने कंधे
अपनत्व और सादगी के साथ
और करता रहा प्रेरित
बदने को आगे ही आगे
विषम परिस्थितियों में भी .......
एक इंसान ही था वह
जो चला गया एकाएक
एक इंसान की तरह
जूझते हुए
विषैली हवा से
व्यवस्था से
अपने आपसे
भर गया जो
जीने की चाहत और मकसद
हमारे दिलों में
अपने जाने की कीमत पर
वो जो चला गया
लाखों दिलों में
पैदा करते हुए जज्बा
उस सपने का
जो इंसान को बने रहने दे बस इंसान
एक नायक था हमारे वक़्त का
एक इंसान ही था वह
हमारी ही तरह
हमारे आसपास