Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
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18:18, 17 मार्च 2011 के समय का अवतरण
एक दीपक किरण–कण हूँ।
धूम्र जिसके क्रोड़ में है¸ उस अनल का हाथ हूँ मैं
नव प्रभा लेकर चला हूँ¸ पर जलन के साथ हूँ मैं
सिद्धि पाकर भी¸ तुम्हारी साधना का —
ज्वलित क्षण हूँ।
एक दीपक किरण–कण हूँ।
व्योम के उर में¸ अपार भरा हुआ है जो अंधेरा
और जिसने विश्व को¸ दो बार क्या¸ सौ बार घेरा
उस तिमिर का नाश करने के लिए¸ —
मैं अटल प्रण हूँ।
एक दीपक किरण–कण हूँ।
शलभ को अमरत्व देकर¸ प्रेम पर मरना सिखाया
सूर्य का संदेश लेकर¸ रात्रि के उर में समाया
पर तुम्हारा स्नेह खोकर भी¸ —
तुम्हारी ही शरण हूँ।
एक दीपक किरण–कण हूँ।