भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: मैं गेहूं का पका खेत हूं<br /> चिडियों! मुझे चुग लो<br /> मैं वीरान जंगल क…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
मैं गेहूं का पका खेत हूं<br />
+
{{KKGlobal}}
चिडियों! मुझे चुग लो<br />
+
{{KKRachna
मैं वीरान जंगल का झरना हूं<br />
+
|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव
मुसाफिर! मुझमें नहा लो<br />
+
|संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव
<br />
+
}}
मैं आषाढ़ का पानी हूं<br />
+
{{KKCatKavita}}
पहाड़ों! मुझे गिरा दो<br />
+
<Poem>
मैं खलिहान का बुझा हुआ दिया हूं<br />
+
मैं गेहूँ का पका खेत हूँ
मॉं! मुझे जला दो<br />
+
चिडियो! मुझे चुग लो
<br />
+
मैं वीरान जंगल का झरना हूँ
मैं जल में सोया संगीत हूं<br />
+
मुसाफिर! मुझमें नहा लो
पवन! मुझे जगा दो<br />
+
 
मैं क्रोध का ठंडा पत्‍थर हूं<br />
+
मैं आषाढ़ का पानी हूँ
सूर्य! मुझे तपा दो.<br />
+
पहाड़ो! मुझे गिरा दो
<br />
+
मैं खलिहान का बुझा हुआ दिया हूँ
 +
माँ! मुझे जला दो
 +
 
 +
मैं जल में सोया संगीत हूँ
 +
पवन! मुझे जगा दो
 +
मैं क्रोध का ठंडा पत्‍थर हूँ
 +
सूर्य! मुझे तपा दो।
 +
</poem>

00:58, 1 मई 2010 के समय का अवतरण

मैं गेहूँ का पका खेत हूँ
चिडियो! मुझे चुग लो
मैं वीरान जंगल का झरना हूँ
मुसाफिर! मुझमें नहा लो

मैं आषाढ़ का पानी हूँ
पहाड़ो! मुझे गिरा दो
मैं खलिहान का बुझा हुआ दिया हूँ
माँ! मुझे जला दो

मैं जल में सोया संगीत हूँ
पवन! मुझे जगा दो
मैं क्रोध का ठंडा पत्‍थर हूँ
सूर्य! मुझे तपा दो।