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ज्ञानोज्वल जिनका अंतस्तल
उनको क्या सुख-दुःख, फलाफल?
मदिरालय जिसका उर तन्मय,
उसको क्या फिर स्वर्ग-नरक-भय?
वह मानस जिसमें मदिरा रस
उसे वसन क्या? टाट कि अतलस!
अवश पलक पाएँ न प्रिय झलक
जब तक, तकिया शिला तभी तक!