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"जगत-घट को विष से कर पूर्ण / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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जगत-घट को विष से कर पूर्ण
 
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किया जिन हाथों ने तैयार,
 
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लगाया उसके मुख पर, नारि,
 
लगाया उसके मुख पर, नारि,
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तुम्हारे अधरों का मधु सार,
  
तुम्‍हारे अधरों का मधु सार,
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नहीं तो देता कब का देता तोड़
 
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पुरुष-विष-घट यह ठोकर मार,
 
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इसी मधु को लेने को स्वाद
:::नहीं तो देता कब का देता तोड़
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हलाहल पी जाता संसार!
 
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:::पुरुष-विष-घट यह ठोकर मार,
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:::इसी मधु को लेने को स्‍वाद
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:::हलाहल पी जाता संसार!
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19:48, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

जगत-घट को विष से कर पूर्ण
किया जिन हाथों ने तैयार,
लगाया उसके मुख पर, नारि,
तुम्हारे अधरों का मधु सार,

नहीं तो देता कब का देता तोड़
पुरुष-विष-घट यह ठोकर मार,
इसी मधु को लेने को स्वाद
हलाहल पी जाता संसार!