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"मेरे भारत मेरे स्वदेश / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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मेरे भारत मेरे स्वदेश | मेरे भारत मेरे स्वदेश | ||
− | तू चिर प्रशांत, तू चिर अजेय, | + | तू चिर-प्रशांत, तू चिर-अजेय, |
सुर-मुनि-वन्दित, स्थित, अप्रमेय | सुर-मुनि-वन्दित, स्थित, अप्रमेय | ||
हे सगुन ब्रह्म, वेदादि गेय! | हे सगुन ब्रह्म, वेदादि गेय! | ||
− | हे चिर अनादि! हे चिर अशेष! | + | हे चिर-अनादि! हे चिर-अशेष! |
गीता-गायत्री के प्रदेश! | गीता-गायत्री के प्रदेश! | ||
सीता-सावित्री के प्रदेश! | सीता-सावित्री के प्रदेश! | ||
गंगा-यमुनोत्री के प्रदेश | गंगा-यमुनोत्री के प्रदेश | ||
− | हे आर्य- | + | हे आर्य-धरित्री के प्रदेश |
− | तू राम-कृष्ण की | + | तू राम-कृष्ण की मातृ-भूमि |
सौमित्रि-भरत की भ्रातृ-भूमि | सौमित्रि-भरत की भ्रातृ-भूमि | ||
− | जीवन- | + | जीवन-दात्री, भाव-धातृ भूमि |
तुझको प्रणाम हे पुण्य-वेश! | तुझको प्रणाम हे पुण्य-वेश! | ||
. . . | . . . | ||
तेरे गांडीव-पिनाक कहाँ? | तेरे गांडीव-पिनाक कहाँ? | ||
− | शर, जिनसे सृष्टि | + | शर, जिनसे सृष्टि अवाक्, कहाँ? |
धँस जाय धरा वह धाक कहाँ? | धँस जाय धरा वह धाक कहाँ? | ||
ओ साधक कर नयनोन्मेष! | ओ साधक कर नयनोन्मेष! |
03:29, 21 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
मेरे भारत मेरे स्वदेश
तू चिर-प्रशांत, तू चिर-अजेय,
सुर-मुनि-वन्दित, स्थित, अप्रमेय
हे सगुन ब्रह्म, वेदादि गेय!
हे चिर-अनादि! हे चिर-अशेष!
गीता-गायत्री के प्रदेश!
सीता-सावित्री के प्रदेश!
गंगा-यमुनोत्री के प्रदेश
हे आर्य-धरित्री के प्रदेश
तू राम-कृष्ण की मातृ-भूमि
सौमित्रि-भरत की भ्रातृ-भूमि
जीवन-दात्री, भाव-धातृ भूमि
तुझको प्रणाम हे पुण्य-वेश!
. . .
तेरे गांडीव-पिनाक कहाँ?
शर, जिनसे सृष्टि अवाक्, कहाँ?
धँस जाय धरा वह धाक कहाँ?
ओ साधक कर नयनोन्मेष!
तू विश्व-सभ्यता-शक्ति-केंद्र
तुझमें विलीन शत-शत महेंद्र
नत विश्व-विजेता अलक्षेन्द्र
तेरी सीमा में कर प्रवेश
मेरे भारत मेरे स्वदेश