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सदी / मुकेश मानस

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सदी
 
 
एक सदी जा रही है
हमारी वीरता
हमारे शौर्य
और हमारी पराजय की गाथाएं गाथाएँ लेकर
एक सदी आ रही है
न ग्लानि है, न शर्म है
चहुं चहुँ ओर पसरी है निराशा
एक ठंडी शांति है
किंकर्तव्यविमूढ़ता
एक सदी जा रही है
एक सदी आ रही है
 रचनाकाल : 1999
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