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"प्रतीक्षा / मदन कश्यप" के अवतरणों में अंतर

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रात के तीन बजे अचानक उचट गई है नींद  
 
रात के तीन बजे अचानक उचट गई है नींद  

10:30, 6 जून 2010 के समय का अवतरण

रात के तीन बजे अचानक उचट गई है नींद
यह वह खतरनाक समय है
जब कोयल बंद कर चुकी है कूकना
और मूर्गों ने नहीं शुरू किया है बाँग देना
झींगुरों के जेहन में आहिस्ता-आहिस्ता उतर रही है खामोशी
सितारे लौट रहे हैं
अपनी-अपनी लोपस्थली की ओर

चारों तरफ फेला है गहरा अंधकार
इस समय कितनी सहज-शांत लग रही है
झूठों-मक्कारों से भरी यह पृथ्वी
यह वक्त होता है
कुत्तों और सियारों के भी सो जाने का

(इसी समय पहचाना जा सकता है
अपने दूधमुँहे आक्रोश को
घृणा इस समय हो जाती है आवेगहीन)

करूण संगीत की तरह बज रहा है सन्नाटा
जैसे दूर बैठी कोई अकेली बूढ़ी माँ गा रही हो
सिसकियों की संगत पर बिदागीत

धीरे-धीरे एक तिरछी ढलान की ओर बढ़ रही है
तारीक रात!