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"अपनी-अपनी बात / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'" के अवतरणों में अंतर
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दूसरों की जो सुने, मिलते हैं वो मुश्किल से लोग | दूसरों की जो सुने, मिलते हैं वो मुश्किल से लोग | ||
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तैरने वाले की जय-जयकार दोनों पार से | तैरने वाले की जय-जयकार दोनों पार से | ||
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देखते हैं डूबने वाले को चुप साहिल से लोग | देखते हैं डूबने वाले को चुप साहिल से लोग | ||
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आदमी जो भी वहाँ पहुँचा वो जीते जी मरा | आदमी जो भी वहाँ पहुँचा वो जीते जी मरा | ||
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हादसा यह देखकर डरने लगे मंज़िल से लोग | हादसा यह देखकर डरने लगे मंज़िल से लोग | ||
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जान भी देने की बातें यूँ तो होती हैं यहाँ | जान भी देने की बातें यूँ तो होती हैं यहाँ | ||
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पर दुआएँ तक कभी देते नहीं हैं दिल से लोग | पर दुआएँ तक कभी देते नहीं हैं दिल से लोग | ||
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इससे भी बढ़कर तमाशा और क्या होगा पराग | इससे भी बढ़कर तमाशा और क्या होगा पराग | ||
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पूछते हैं ज़िंदगी की कैफ़ियत क़ातिल से लोग | पूछते हैं ज़िंदगी की कैफ़ियत क़ातिल से लोग | ||
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14:49, 10 मई 2009 के समय का अवतरण
अपनी-अपनी बात कह कर उठ गये महफ़िल से लोग
दूसरों की जो सुने, मिलते हैं वो मुश्किल से लोग
तैरने वाले की जय-जयकार दोनों पार से
देखते हैं डूबने वाले को चुप साहिल से लोग
आदमी जो भी वहाँ पहुँचा वो जीते जी मरा
हादसा यह देखकर डरने लगे मंज़िल से लोग
जान भी देने की बातें यूँ तो होती हैं यहाँ
पर दुआएँ तक कभी देते नहीं हैं दिल से लोग
इससे भी बढ़कर तमाशा और क्या होगा पराग
पूछते हैं ज़िंदगी की कैफ़ियत क़ातिल से लोग