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|रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल' | |रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल' | ||
+ | |संग्रह=हाइकू 2009 / गोपालदास "नीरज" | ||
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दुनिया में सुख की | दुनिया में सुख की | ||
− | एक ही | + | एक ही रीति । |
आप से मिले | आप से मिले | ||
तो लगा क्या मिलना | तो लगा क्या मिलना | ||
− | किसी और से | + | किसी और से ! |
− | + | ढूँढ़ता रहा | |
खुद को दिन रात | खुद को दिन रात | ||
− | + | ढूँढ़ न पाया ! | |
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− | छीन ही लिया नदी का नदीपन प्यासे | + | छीन ही लिया |
+ | नदी का नदीपन | ||
+ | प्यासे बाँधों ने । | ||
− | रिश्तों से ज्यादा तनाव बसते है घरों में अब | + | रिश्तों से ज्यादा |
− | + | तनाव बसते है | |
− | + | घरों में अब ! | |
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− | बुझते हुए पल भर को सही लड़ी थी लौ भी | + | युग-युगों से |
− | मैं नहीं हूँ मैं | + | सोए पड़े पहाड़ |
+ | जागेंगे कब ? | ||
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+ | शुद्ध आक्सीजन भी | ||
+ | वश न चला । | ||
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+ | लड़ी थी लौ भी । | ||
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+ | तुम भी कहाँ तुम | ||
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10:56, 13 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
कौन मानेगा
सबसे कठिन है
सरल होना।
प्रीति, हाँ प्रीति
दुनिया में सुख की
एक ही रीति ।
आप से मिले
तो लगा क्या मिलना
किसी और से !
ढूँढ़ता रहा
खुद को दिन रात
ढूँढ़ न पाया !
छोटा कर दे
रातों की लम्बाई भी
गहरी नींद ।
छीन ही लिया
नदी का नदीपन
प्यासे बाँधों ने ।
रिश्तों से ज्यादा
तनाव बसते है
घरों में अब !
युग-युगों से
सोए पड़े पहाड़
जागेंगे कब ?
गाँवों से लाता
शुद्ध आक्सीजन भी
वश न चला ।
भीड़ तो बढ़ी
विरल हो चले हैं
रिश्ते परंतु ।
रात होते ही
गोलबन्द हो गये
चाँद-सितारे ।
घिर गया है
विषैली लताओं से
जीवन- वृक्ष ।
बुझते हुए
पल भर को सही
लड़ी थी लौ भी ।
मैं नहीं हूँ मैं
तुम भी कहाँ तुम
सब मुखौटॆ ।