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"वे डूब गए / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
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लो, स्वर्ण-स्वर्ण अब सब भूधर! | लो, स्वर्ण-स्वर्ण अब सब भूधर! | ||
पल में कोमल पड़, पिघल उठे | पल में कोमल पड़, पिघल उठे | ||
− | सुन्दर बन, जड़, निर्मम | + | सुन्दर बन, जड़, निर्मम प्रस्तर, |
सब मन्त्र-मुग्ध हो, जड़ित हुए, | सब मन्त्र-मुग्ध हो, जड़ित हुए, | ||
लहरों-से चित्रित लहरों पर! | लहरों-से चित्रित लहरों पर! | ||
::मानव जग में गिरि-कारा-सी | ::मानव जग में गिरि-कारा-सी | ||
::गत-युग की संस्कृतियाँ दुर्धर | ::गत-युग की संस्कृतियाँ दुर्धर | ||
− | :: | + | ::बंदी की हैं मानवता को |
::रच देश-जाति की भित्ति अमर। | ::रच देश-जाति की भित्ति अमर। | ||
::ये डूबेंगी-सब डूबेंगी | ::ये डूबेंगी-सब डूबेंगी | ||
− | ::पा नव मानवता का | + | ::पा नव मानवता का विकास, |
::हँस देगा स्वर्णिम वज्र-लौह | ::हँस देगा स्वर्णिम वज्र-लौह | ||
::छू मानव-आत्मा का प्रकाश! | ::छू मानव-आत्मा का प्रकाश! |
12:38, 10 जून 2010 के समय का अवतरण
वे डूब गए--सब डूब गए
दुर्दम, उदग्रशिर अद्रि-शिखर!
स्वप्नस्थ हुए स्वर्णातप में
लो, स्वर्ण-स्वर्ण अब सब भूधर!
पल में कोमल पड़, पिघल उठे
सुन्दर बन, जड़, निर्मम प्रस्तर,
सब मन्त्र-मुग्ध हो, जड़ित हुए,
लहरों-से चित्रित लहरों पर!
मानव जग में गिरि-कारा-सी
गत-युग की संस्कृतियाँ दुर्धर
बंदी की हैं मानवता को
रच देश-जाति की भित्ति अमर।
ये डूबेंगी-सब डूबेंगी
पा नव मानवता का विकास,
हँस देगा स्वर्णिम वज्र-लौह
छू मानव-आत्मा का प्रकाश!
रचनाकाल: अप्रैल’१९३६