अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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| + | कुछ देर रुक कर | ||
| + | फिर एक गहन सन्नाटा। | ||
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00:51, 21 जून 2010 के समय का अवतरण
यह कविता कवि ने गहन रुग्णावस्था में निधन से मात्र 20 दिन पूर्व लिखी थी
वे आ रहे हैं
श्याम वर्ण अश्वों पर सवार
मेरे घर की ओर ।
उनके काम बता दिए गए
एक का काम है मुझको नहीं बोलने देने का
वाणी को छीन लें ।
दूसरे का काम है
न सुनने देने का ।
तीसरे का काम है
आँख बन्द करने का-
ताकि मैं उनका आतंक न देख सकूँ ।
चौथे का काम है
मेरे दाँत तोड़ने का
ताकि मैं चलते समय
किसी पर आक्रमण न करूँ ।
कुछ देर रुक कर
फिर एक गहन सन्नाटा।