भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शून्य / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
'''शून्य'''<br /><br /> पहले मैं सोचा करता था<br />नहीं शून्य का कुछ भी मतलब<br />लेकिन इसमें कितनी ताकत<br />इसको जान गया हूँ मैं अब।<br /><br />अगर एक के साथ शून्य हो<br />तो पूरे दस बन जाएँगे<br />दस के साथ लगाओगे यदि<br />तो पूरे सौ कहलाएँगे।<br /><br />सौ के संग भी एक शून्य हो<br />तो हज़ार यह बन जाते हैं<br />एक शून्य यदि और यहाँ हो<br />दस हज़ार फिर कह्लाते हैं।<br /><br />कुछ भी नहीं समझते जिनको<br />साथ बिठा उनको देखोगे<br />तो दस गुनी शक्ति अपने में<br />निश्चय बढी हुई पाओगे।   
+
पहले मैं सोचा करता था
 +
नहीं शून्य का कुछ भी मतलब
 +
लेकिन इसमें कितनी ताक़त
 +
इसको जान गया हूँ मैं अब।
 +
 
 +
अगर एक के साथ शून्य हो
 +
तो पूरे दस बन जाएँगे
 +
दस के साथ लगाओगे यदि
 +
तो पूरे सौ कहलाएँगे।
 +
 
 +
सौ के संग भी एक शून्य हो
 +
तो हज़ार यह बन जाते हैं
 +
एक शून्य यदि और यहाँ हो
 +
दस हज़ार फिर कहलाते हैं।
 +
 
 +
कुछ भी नहीं समझते जिनको
 +
साथ बिठा उनको देखोगे
 +
तो दस गुनी शक्ति अपने में
 +
निश्चय बढ़ी हुई पाओगे।   
 
<poem>
 
<poem>

22:54, 21 जून 2010 के समय का अवतरण

पहले मैं सोचा करता था
नहीं शून्य का कुछ भी मतलब
लेकिन इसमें कितनी ताक़त
इसको जान गया हूँ मैं अब।

अगर एक के साथ शून्य हो
तो पूरे दस बन जाएँगे
दस के साथ लगाओगे यदि
तो पूरे सौ कहलाएँगे।

सौ के संग भी एक शून्य हो
तो हज़ार यह बन जाते हैं
एक शून्य यदि और यहाँ हो
दस हज़ार फिर कहलाते हैं।

कुछ भी नहीं समझते जिनको
साथ बिठा उनको देखोगे
तो दस गुनी शक्ति अपने में
निश्चय बढ़ी हुई पाओगे।