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"समय के समर्थ अश्व / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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समय के समर्थ अश्व मान लो
 
समय के समर्थ अश्व मान लो
 
 
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो।
 
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो।
 
 
छोड़ दो पहाड़ियाँ, उजाड़ियाँ
 
छोड़ दो पहाड़ियाँ, उजाड़ियाँ
 
 
तुम उठो कि गाँव-गाँव ही चलो।।
 
तुम उठो कि गाँव-गाँव ही चलो।।
 
 
  
 
रूप फूल का कि रंग पत्र का
 
रूप फूल का कि रंग पत्र का
 
 
बढ़ चले कि धूप-छाँव ही चलो।।
 
बढ़ चले कि धूप-छाँव ही चलो।।
 
 
समय के समर्थ उश्व मान लो
 
समय के समर्थ उश्व मान लो
 
 
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो।।
 
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो।।
 
 
  
 
वह खगोल के निराश स्वप्न-सा
 
वह खगोल के निराश स्वप्न-सा
 
 
तीर आज आर-पार हो गया
 
तीर आज आर-पार हो गया
 
 
आँधियों भरे अ-नाथ बोल तो
 
आँधियों भरे अ-नाथ बोल तो
 
 
आज प्यार! क्यों उदार हो गया?
 
आज प्यार! क्यों उदार हो गया?
 
  
 
इस मनुष्य का ज़रा मज़ा चखो
 
इस मनुष्य का ज़रा मज़ा चखो
 
 
किन्तु यार एक दाँव ही चलो।।
 
किन्तु यार एक दाँव ही चलो।।
 
 
समय के समर्थ अश्व मान लो
 
समय के समर्थ अश्व मान लो
 
 
आज बन्धु ! चार पाँव ही चलो।।
 
आज बन्धु ! चार पाँव ही चलो।।
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10:45, 6 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

समय के समर्थ अश्व मान लो
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो।
छोड़ दो पहाड़ियाँ, उजाड़ियाँ
तुम उठो कि गाँव-गाँव ही चलो।।

रूप फूल का कि रंग पत्र का
बढ़ चले कि धूप-छाँव ही चलो।।
समय के समर्थ उश्व मान लो
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो।।

वह खगोल के निराश स्वप्न-सा
तीर आज आर-पार हो गया
आँधियों भरे अ-नाथ बोल तो
आज प्यार! क्यों उदार हो गया?

इस मनुष्य का ज़रा मज़ा चखो
किन्तु यार एक दाँव ही चलो।।
समय के समर्थ अश्व मान लो
आज बन्धु ! चार पाँव ही चलो।।