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"डविल्स थ्राट / कर्ण सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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खेल रही है नदी | खेल रही है नदी | ||
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चक्कर काट रही है नदी | चक्कर काट रही है नदी | ||
खेल में दिपती | खेल में दिपती | ||
− | दो | + | दो खँजन आँखें |
− | + | भवों के इशारे पर | |
− | + | खाँडे की धार नापते पाँव | |
बुला रही है नदी । | बुला रही है नदी । | ||
बाहर भीतर अनहद | बाहर भीतर अनहद | ||
− | घुप्प | + | घुप्प अँधेरे में |
छू रही है नदी । | छू रही है नदी । | ||
− | जो भी | + | जो भी यहाँ आया |
डूबा | डूबा | ||
कभी मिला नहीं । | कभी मिला नहीं । | ||
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ऊँचे पहाड़ के बंद उदर में | ऊँचे पहाड़ के बंद उदर में | ||
गरजती हो तुम | गरजती हो तुम | ||
− | + | गरजते हैं सौ पहाड़ | |
ग्रीस का सीना सीमा पार | ग्रीस का सीना सीमा पार | ||
पत्थरों पर खुदे हैं | पत्थरों पर खुदे हैं | ||
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फिर भी बार-बार आते हैं । | फिर भी बार-बार आते हैं । | ||
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21:10, 1 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
डविल्स थ्रोट<ref>ग्रीक सीमा पर एक भयंकर गुफ़ा में उफनती नदी किंवदतियों भरी</ref>
खेल रही है नदी
भँवरो में
चक्कर काट रही है नदी
खेल में दिपती
दो खँजन आँखें
भवों के इशारे पर
खाँडे की धार नापते पाँव
बुला रही है नदी ।
बाहर भीतर अनहद
घुप्प अँधेरे में
छू रही है नदी ।
जो भी यहाँ आया
डूबा
कभी मिला नहीं ।
ऊँचे पहाड़ के बंद उदर में
गरजती हो तुम
गरजते हैं सौ पहाड़
ग्रीस का सीना सीमा पार
पत्थरों पर खुदे हैं
तुम्हारी बलि चढ़े नाम
पर्यटक आते हैं
पढ़ने, सुनने
तुम्हारे लेख
तुम्हारे स्वर
तुम्हीं में समाने ।
वे आते हैं
चहकते
खेलते
और डूबकर जाते हैं
अकेले
अस्तित्वहीन
फिर भी बार-बार आते हैं ।
शब्दार्थ
<references/>