भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घन-कुरंग / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[नागार्जुन]]
+
{{KKGlobal}}
[[कवितायें]]
+
{{KKRachna
[[नागार्जुन]]
+
|रचनाकार=नागार्जुन
 
+
}}
***********************************
+
{{KKCatNavgeet}}
 
+
<poem>
नभ में चौकडियां भरें भले
+
नभ में चौकडियाँ भरें भले
 
+
 
शिशु घन-कुरंग
 
शिशु घन-कुरंग
 
+
खिलवाड़ देर तक करें भले
खिलवाड देर तक करें भले
+
 
+
 
शिशु घन-कुरंग
 
शिशु घन-कुरंग
 
+
लो, आपस में गुथ गए खूब
लो, आपस मेन गुथ गये खूब
+
 
+
 
शिशु घन-कुरंग
 
शिशु घन-कुरंग
 
+
लो, घटा जल में गए डूब
लो, घटा जल में गये डूब
+
 
+
 
शिशु घन-कुरंग
 
शिशु घन-कुरंग
 
 
लो, बूंदें पडने लगीं, वाह
 
लो, बूंदें पडने लगीं, वाह
 
 
शिशु घन-कुरंग
 
शिशु घन-कुरंग
 
+
लो, कब की सुधियाँ जगीं, आह
लो, कब की सुधियां जगीं, आह
+
 
+
 
शिशु घन-कुरंग
 
शिशु घन-कुरंग
 
+
पुरवा सिहकी, फिर दीख गए
पुरवा सिह्की, फिर दीख गये
+
शिशु घन-कुरंग
 
+
शशि से शरमाना सीख गए
 
शिशु घन-कुरंग
 
शिशु घन-कुरंग
  
शशि से शरमाना सीख गये
 
  
शिशु घन-कुरंग
 
  
१९६४ में लिखी गई
+
''१९६४ में लिखित''
 +
</poem>

09:50, 27 जून 2010 के समय का अवतरण

नभ में चौकडियाँ भरें भले
शिशु घन-कुरंग
खिलवाड़ देर तक करें भले
शिशु घन-कुरंग
लो, आपस में गुथ गए खूब
शिशु घन-कुरंग
लो, घटा जल में गए डूब
शिशु घन-कुरंग
लो, बूंदें पडने लगीं, वाह
शिशु घन-कुरंग
लो, कब की सुधियाँ जगीं, आह
शिशु घन-कुरंग
पुरवा सिहकी, फिर दीख गए
शिशु घन-कुरंग
शशि से शरमाना सीख गए
शिशु घन-कुरंग



१९६४ में लिखित