भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घन-कुरंग / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=नागार्जुन | |
− | + | }} | |
− | + | {{KKCatNavgeet}} | |
− | + | <poem> | |
− | नभ में | + | नभ में चौकडियाँ भरें भले |
− | + | ||
शिशु घन-कुरंग | शिशु घन-कुरंग | ||
− | + | खिलवाड़ देर तक करें भले | |
− | + | ||
− | + | ||
शिशु घन-कुरंग | शिशु घन-कुरंग | ||
− | + | लो, आपस में गुथ गए खूब | |
− | लो, आपस में गुथ | + | |
− | + | ||
शिशु घन-कुरंग | शिशु घन-कुरंग | ||
− | + | लो, घटा जल में गए डूब | |
− | लो, घटा जल में | + | |
− | + | ||
शिशु घन-कुरंग | शिशु घन-कुरंग | ||
− | |||
लो, बूंदें पडने लगीं, वाह | लो, बूंदें पडने लगीं, वाह | ||
− | |||
शिशु घन-कुरंग | शिशु घन-कुरंग | ||
− | + | लो, कब की सुधियाँ जगीं, आह | |
− | लो, कब की | + | |
− | + | ||
शिशु घन-कुरंग | शिशु घन-कुरंग | ||
− | + | पुरवा सिहकी, फिर दीख गए | |
− | पुरवा | + | शिशु घन-कुरंग |
− | + | शशि से शरमाना सीख गए | |
शिशु घन-कुरंग | शिशु घन-कुरंग | ||
− | |||
− | |||
− | १९६४ में | + | ''१९६४ में लिखित'' |
+ | </poem> |
09:50, 27 जून 2010 के समय का अवतरण
नभ में चौकडियाँ भरें भले
शिशु घन-कुरंग
खिलवाड़ देर तक करें भले
शिशु घन-कुरंग
लो, आपस में गुथ गए खूब
शिशु घन-कुरंग
लो, घटा जल में गए डूब
शिशु घन-कुरंग
लो, बूंदें पडने लगीं, वाह
शिशु घन-कुरंग
लो, कब की सुधियाँ जगीं, आह
शिशु घन-कुरंग
पुरवा सिहकी, फिर दीख गए
शिशु घन-कुरंग
शशि से शरमाना सीख गए
शिशु घन-कुरंग
१९६४ में लिखित