भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खुरदरे पैर / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: नागार्जुन कवितायें नागर्जुन *************************************** खुब गये दूधिया निगाह...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=नागार्जुन | |
− | + | }} | |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <poem> | |
− | खुब | + | खुब गए |
− | + | ||
दूधिया निगाहों में | दूधिया निगाहों में | ||
− | |||
फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर | फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर | ||
− | + | धँस गए | |
− | + | ||
− | + | ||
कुसुम-कोमल मन में | कुसुम-कोमल मन में | ||
− | |||
गुट्ठल घट्ठोंवाले कुलिश-कठोर पैर | गुट्ठल घट्ठोंवाले कुलिश-कठोर पैर | ||
− | |||
दे रहे थे गति | दे रहे थे गति | ||
− | + | रबड़-विहीन ठूँठ पैडलों को | |
− | + | ||
− | + | ||
चला रहे थे | चला रहे थे | ||
− | |||
एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन चक्र | एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन चक्र | ||
− | |||
कर रहे थे मात त्रिविक्रम वामन के पुराने पैरों को | कर रहे थे मात त्रिविक्रम वामन के पुराने पैरों को | ||
− | |||
नाप रहे थे धरती का अनहद फासला | नाप रहे थे धरती का अनहद फासला | ||
− | |||
घण्टों के हिसाब से ढोये जा रहे थे ! | घण्टों के हिसाब से ढोये जा रहे थे ! | ||
+ | देर तक टकराए | ||
+ | उस दिन इन आँखों से वे पैर | ||
+ | भूल नहीं पाऊंगा फटी बिवाइयाँ | ||
+ | खुब गईं दूधिया निगाहों में | ||
+ | धँस गईं कुसुम-कोमल मन में | ||
− | + | ''१९६१ में लिखी गई'' | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | १९६१ में लिखी गई | + |
22:13, 24 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
खुब गए
दूधिया निगाहों में
फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर
धँस गए
कुसुम-कोमल मन में
गुट्ठल घट्ठोंवाले कुलिश-कठोर पैर
दे रहे थे गति
रबड़-विहीन ठूँठ पैडलों को
चला रहे थे
एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन चक्र
कर रहे थे मात त्रिविक्रम वामन के पुराने पैरों को
नाप रहे थे धरती का अनहद फासला
घण्टों के हिसाब से ढोये जा रहे थे !
देर तक टकराए
उस दिन इन आँखों से वे पैर
भूल नहीं पाऊंगा फटी बिवाइयाँ
खुब गईं दूधिया निगाहों में
धँस गईं कुसुम-कोमल मन में
१९६१ में लिखी गई