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13:46, 6 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
जरा सम्हल कर
धीरज से पढ़
बार-बार पढ़
ठहर-ठहर कर
आंख मूंद कर आंख खोल कर,
गल्प नहीं है
कविता है यह.
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