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कर्मनाशा / संतोष मायामोहन
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|रचनाकार=संतोष मायामोहन
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}}
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<
poem
Poem
>मैं
नाहना
नहाना
चाहती
हूं
हूँ
कर्मनाशा नदी में,
मैं धोना चाहती
हूं
हूँ
अपने सभी -
पाप और पुण्य -
मैं बनना चाहती
हूं
हूँ
-
मनुष्य
और देखना चाहती
हूं
हूँ
-
अपने भीतर की
मानवता ।
अनिल जनविजय
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