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सरकश - सरचढ़े । जंग-ओ-जदल - युद्ध और संघर्ष । कैफ़ - शांति । खूँरेजी - खूनखराबा । रग्बत - स्नेह । रक्स - नृत्य । आहंग - आलाप । तसव्वुर - खयाल, विचार याद । सोज - जलन । शिद्दत - तेज, प्रचण्डता । उल्फत - प्रेम । नग्मासराई - नग्में गाने वाला । फ़कत - केवल, सिर्फ़ । मुफ़लिस - गरीब । तकब्बुर - मगरूर, गुमान । ताब-ए-निशात - खुशी की जलन । बज़्म-ए-इश्रत - समाज की भीड़ या महफ़िल

15:45, 15 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

मेरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है
कि शायद मेरे दिल को इश्क़ के नग़्मों से नफ़रत है


मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है
मेरी फ़ितरत को ख़ूँरेज़ी के अफ़सानों से रग़्बत है
मेरी दुनिया में कुछ वक्त नहीं है रक़्स-ओ-नग़्में की
मेरा महबूब नग़्मा शोर-ए-आहंग-ए-बग़ावत है


मगर ऐ काश! देखें वो मेरी पुरसोज़ रातों को
मैं जब तारों पे नज़रें गाड़कर आसूँ बहाता हूँ
तसव्वुर बनके भूली वारदातें याद आती हैं
तो सोज़-ओ-दर्द की शिद्दत से पहरों तिल्मिलाता हूँ
कोई ख़्वाबों में ख़्वाबीदा उमंगों को जगाती है
तो अपनी ज़िन्दगी को मौत के पहलू में पाता हूँ

मैं शायर हूँ मुझे फ़ितरत के नज़ारों से उल्फ़त है
मेरा दिल दुश्मन-ए-नग़्मा-सराई हो नहीं सकता
मुझे इन्सानियत का दर्द भी बख़्शा है क़ुदरत ने
मेरा मक़सद फ़क़त शोला नवाई हो नहीं सकता
जवाँ हूँ मैं जवानी लग़्ज़िशों का एक तूफ़ाँ है
मेरी बातों में रन्ग-ए-पारसाई हो नहीं सकता


मेरे सरकश तरानों की हक़ीक़त है तो इतनी है
कि जब मैं देखता हूँ भूक के मारे किसानों को
ग़रीबों को, मुफ़लिसों को, बेकसों को, बेसहारों को
सिसकती नाज़नीनों को, तड़पते नौजवानों को
हुकूमत के तशद्दुद को, अमारत के तकब्बुर को
किसी के चिथड़ों को और शहन्शाही ख़ज़ानों को

तो दिल ताब-ए-निशात-ए-बज़्म-ए-इश्रत ला नहीं सकता
मैं चाहूँ भी तो ख़्वाब-आवार तराने गा नहीं सकता

शब्दार्थ

सरकश - सरचढ़े । जंग-ओ-जदल - युद्ध और संघर्ष । कैफ़ - शांति । खूँरेजी - खूनखराबा । रग्बत - स्नेह । रक्स - नृत्य । आहंग - आलाप । तसव्वुर - खयाल, विचार याद । सोज - जलन । शिद्दत - तेज, प्रचण्डता । उल्फत - प्रेम । नग्मासराई - नग्में गाने वाला । फ़कत - केवल, सिर्फ़ । मुफ़लिस - गरीब । तकब्बुर - मगरूर, गुमान । ताब-ए-निशात - खुशी की जलन । बज़्म-ए-इश्रत - समाज की भीड़ या महफ़िल