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"कलियुगी रामलीला / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

(नया पृष्ठ: रावण के प्रति हनुमान का उदार भाव देखकर रामलीला का मैनेजर झल्लाय…)
 
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रावण के प्रति हनुमान का उदार भाव देखकर
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रामलीला का मैनेजर झल्लाया
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हनुमान को पास बुलाकर चिल्लाया
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|रचनाकार= शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
क्यों जी ? तुम रामलीला की मर्यादा तोड़ रहे हो
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अच्छी ख़ासी कहानी को उल्टा किधर मोड़ रहे हो?
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तुम्हें रावण को सबक सिखाना था
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पर तुम उसके हाथ जोड़ रहे हो
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<Poem>
हनुमान बना पात्र हंसा और बोला
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रावण के प्रति हनुमान का उदार भाव देखकर
भैया यह त्रेता की नहीं कलियुग की रामलीला है
+
रामलीला का मैनेजर झल्लाया
यहाँ हर प्रसंग में कुछ न कुछ काला पीला है
+
हनुमान को पास बुलाकर चिल्लाया
मैं तो ठहरा नौकर मुझे क्या रावण क्या राम
+
क्यों जी ? तुम रामलीला की मर्यादा तोड़ रहे हो
जिसकी सत्ता उसका गुलाम
+
अच्छी ख़ासी कहानी को उल्टा किधर मोड़ रहे हो?
आजकल हमें जल्दी जल्दी मालिक बदलना पड़ता है
+
तुम्हें रावण को सबक सिखाना था
इसीलिए राम के साथ साथ
+
पर तुम उसके हाथ जोड़ रहे हो
रावण से भी मधुर संबंध रखना पड़ता है
+
हनुमान बना पात्र हँसा और बोला
मुझे अच्छी तरह मालूम है कि
+
भैया यह त्रेता की नहीं कलियुग की रामलीला है
यह रावण मरेगा तो है नहीं
+
यहाँ हर प्रसंग में कुछ न कुछ काला पीला है
ज्यादा से ज्यादा स्थान बदल लेगा
+
मैं तो ठहरा नौकर मुझे क्या रावण क्या राम
वह राम का कुछ बिगाड़ पाए या नहीं
+
जिसकी सत्ता उसका गुलाम
किन्तु मेरा तो पक्का कबाड़ा कर देगा
+
आजकल हमें जल्दी-जल्दी मालिक बदलना पड़ता है
अतः रावण हो या राम
+
इसीलिए राम के साथ-साथ
हमें तो बस तनख्वाह से काम
+
रावण से भी मधुर संबंध रखना पड़ता है
जैसे आम के आम और गुठलियों के दाम
+
मुझे अच्छी तरह मालूम है कि
मैं ही नहीं सभी पाखंडी चालें चल रहे हैं
+
यह रावण मरेगा तो है नहीं
समय के हिसाब से सभी किरदार
+
ज़्यादा से ज़्यादा स्थान बदल लेगा
अपनी भूमिका बदल रहे हैं
+
वह राम का कुछ बिगाड़ पाए या नहीं
अब विभीषण को ही देखिए
+
किन्तु मेरा तो पक्का कबाड़ा कर देगा
कहने को तो रावण ने उसे लात मारी थी
+
अतः रावण हो या राम
पर वह उसकी राजनैतिक लाचारी थी
+
हमें तो बस तनख़्वाह से काम
देखना अब विभीषण इतिहास नहीं दोहराएगा
+
जैसे आम के आम और गुठलियों के दाम
मौका मिलते ही राम की सेना में दंगा करवाएगा
+
मैं ही नहीं सभी पाखंडी चालें चल रहे हैं
अब कुंभकर्ण भी फालतू नही मरना चाहता
+
समय के हिसाब से सभी किरदार
फ्री की खाता है और
+
अपनी भूमिका बदल रहे हैं
कोई काम भी नहीं करना चाहता
+
अब विभीषण को ही देखिए
उसे अब नींद की गोली खाने के बाद भी
+
कहने को तो रावण ने उसे लात मारी थी
नींद नहीं आती
+
पर वह उसकी राजनीतिक लाचारी थी
फिर भी जबरन सोता है
+
देखना अब विभीषण इतिहास नहीं दोहराएगा
पर सोते हुए भी लंका की हर गतिविधि से वाकिफ होता है
+
मौका मिलते ही राम की सेना में दंगा करवाएगा
इस बार उसकी भूमिका में भी परिवर्तन हो जाएगा
+
अब कुंभकर्ण भी फालतू नही मरना चाहता
कुंभकर्ण लड़ेगा नहीं
+
फ़्री की खाता है और
जागेगा .खाएगा पिएगा और फिर सो जाएगा
+
कोई काम भी नहीं करना चाहता
अब अंगद में भी
+
उसे अब नींद की गोली खाने के बाद भी
 
+
नींद नहीं आती
आत्मविश्वास कहाँ से आएगा?
+
फिर भी जबरन सोता है
उसे मालूम है कि पैर अब
+
पर सोते हुए भी लंका की हर गतिविधि से वाकिफ़ होता है
पूरी तरह जम नहीं पाएगा
+
इस बार उसकी भूमिका में भी परिवर्तन हो जाएगा
कौन जाने भरी सभा के बीच
+
कुंभकर्ण लड़ेगा नहीं
कब अपने ही लोग टाँग खींच दें
+
जागेगा खाएगा पिएगा और फिर सो जाएगा
इसलिए उसे हमेशा युवराज बने रहना मंजूर नहीं है
+
अब अंगद में भी
यदि बालि कुर्सी छोड़ दे तो दिल्ली दूर नहीं है
+
आत्मविश्वास कहाँ से आएगा?
वह अपनी सारी नैतिकता को
+
उसे मालूम है कि पैर अब
जमकर दबोच रहा है
+
पूरी तरह जम नहीं पाएगा
आजकल वह बाली को खुद मारने की सोच रहा है
+
कौन जाने भरी सभा के बीच
वह राजमुकुट अपने सिर पर धरना चाहता है
+
कब अपने ही लोग टाँग खींच दें
और बचा हुआ सुग्रीव का रोल खुद करना चाहता है
+
इसलिए उसे हमेशा युवराज बने रहना मंज़ूर नहीं है
बूढ़े जामवंत भी अब थक गए हैं
+
यदि बालि कुर्सी छोड़ दे तो दिल्ली दूर नहीं है
अपने दल के अनुशासनहीन बंदरों के वक्तव्य सुनकर कान पक गए हैं
+
वह अपनी सारी नैतिकता को
अब जामवंत का उपदेश नहीं सुना जाएगा
+
जमकर दबोच रहा है
इस बार दल का नेता
+
आजकल वह बाली को ख़ुद मारने की सोच रहा है
कोई चुस्त चालाक बंदर चुना जाएगा
+
वह राजमुकुट अपने सिर पर धरना चाहता है
सुलोचना को भी
+
और बचा हुआ सुग्रीव का रोल ख़ुद करना चाहता है
भरी जवानी में सती होना पसंद नहीं है
+
बूढ़े जामवंत भी अब थक गए हैं
कहती है
+
अपने दल के अनुशासनहीन बंदरों के वक्तव्य सुनकर कान पक गए हैं
साथ जीने का तो है पर मरने का अनुबंध नहीं है
+
अब जामवंत का उपदेश नहीं सुना जाएगा
इसलिए अब वह मेघनाद के साथ सती नहीं हो पाएगी
+
इस बार दल का नेता
बल्कि उसकी विधवा बनकर
+
कोई चुस्त चालाक बंदर चुना जाएगा
नारी जागरण अभियान चलाएगी
+
सुलोचना को भी
जटायु को भी अपना रोल बेहद खल रहा है
+
भरी जवानी में सती होना पसंद नहीं है
वह भी अपनी भूमिका बदल रहा है
+
कहती है
अब वह दूर दूर उड़ेगा
+
साथ जीने का तो है पर मरने का अनुबंध नहीं है
रावण के रास्ते में नहीं आएगा
+
इसलिए अब वह मेघनाद के साथ सती नहीं हो पाएगी
अपना फर्ज तो निभाएगा पर
+
बल्कि उसकी विधवा बनकर
अपने पंख नहीं कटवाएगा
+
नारी जागरण अभियान चलाएगी
मारीच ने भी अपने निगेटिव रोल पर
+
जटायु को भी अपना रोल बेहद खल रहा है
गंभीरता से विचार किया है
+
वह भी अपनी भूमिका बदल रहा है
उसने सुरक्षा के लिए
+
अब वह दूर दूर उड़ेगा
बीच का रास्ता निकाल लिया है
+
रावण के रास्ते में नहीं आएगा
वह सोने का मृग तो बनेगा
+
अपना फर्ज तो निभाएगा पर
पर अन्दर बुलेटप्रूफ जाकिट पहनेगा
+
अपने पंख नहीं कटवाएगा
राम का बाण लगते ही गिर जाएगा
+
मारीच ने भी अपने निगेटिव रोल पर
लक्ष्मण को चिल्लाएगा और धीरे से भाग जाएगा
+
गंभीरता से विचार किया है
अभी परसों ही शूर्पनखा की नाक कटी है
+
उसने सुरक्षा के लिए
बड़ी मुश्किल से
+
बीच का रास्ता निकाल लिया है
अपनी जिम्मेदारी निभाने से पीछे हटी है
+
वह सोने का मृग तो बनेगा
पर भूलकर भी यह मत समझना कि
+
पर अन्दर बुलेटप्रूफ जाकिट पहनेगा
अब वह दोबारा नहीं आएगी
+
राम का बाण लगते ही गिर जाएगा
कटी नाक लेकर अब वह
+
लक्ष्मण को चिल्लाएगा और धीरे से भाग जाएगा
लंका नहीं सीधे अमेरिका जाएगी
+
अभी परसों ही शूर्पनखा की नाक कटी है
किसी बड़े अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी करवाएगी
+
बड़ी मुश्किल से
और नया चेहरा लेकर फिर एक बार
+
अपनी जिम्मेदारी निभाने से पीछे हटी है
अपनी भूमिका दोहराएगी
+
पर भूलकर भी यह मत समझना कि
यूँ तो शूर्पनखा के कारनामे जग जाहिर हैं
+
अब वह दोबारा नहीं आएगी
पर करें क्या
+
कटी नाक लेकर अब वह
खर और दूषण राम की पकड़ से बाहर हैं
+
लंका नहीं सीधे अमेरिका जाएगी
यदि शूर्पनखा से बचना है तो
+
किसी बड़े अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी करवाएगी
उसकी नाक नहीं जड़ें काटना होगी
+
और नया चेहरा लेकर फिर एक बार
अब लक्ष्मण को बाण नहीं तोप चलानी होगी
+
अपनी भूमिका दोहराएगी
ऐसी परिस्थिति में राम को भी
+
यूँ तो शूर्पनखा के कारनामे जग जाहिर हैं
मर्यादा के बंधन छोड़ना पड़ेंगे
+
पर करें क्या
रावण को मारना है तो
+
खर और दूषण राम की पकड़ से बाहर हैं
सारे सिद्धांत छोड़ना पड़ेंगे
+
यदि शूर्पनखा से बचना है तो
 +
उसकी नाक नहीं जड़ें काटना होगी
 +
अब लक्ष्मण को बाण नहीं तोप चलानी होगी
 +
ऐसी परिस्थिति में राम को भी
 +
मर्यादा के बंधन छोड़ने पड़ेंगे
 +
रावण को मारना है तो
 +
सारे सिद्धांत छोड़ने पड़ेंगे
 +
</poem>

23:50, 19 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

रावण के प्रति हनुमान का उदार भाव देखकर
रामलीला का मैनेजर झल्लाया
हनुमान को पास बुलाकर चिल्लाया
क्यों जी ? तुम रामलीला की मर्यादा तोड़ रहे हो
अच्छी ख़ासी कहानी को उल्टा किधर मोड़ रहे हो?
तुम्हें रावण को सबक सिखाना था
पर तुम उसके हाथ जोड़ रहे हो
हनुमान बना पात्र हँसा और बोला
भैया यह त्रेता की नहीं कलियुग की रामलीला है
यहाँ हर प्रसंग में कुछ न कुछ काला पीला है
मैं तो ठहरा नौकर मुझे क्या रावण क्या राम
जिसकी सत्ता उसका गुलाम
आजकल हमें जल्दी-जल्दी मालिक बदलना पड़ता है
इसीलिए राम के साथ-साथ
रावण से भी मधुर संबंध रखना पड़ता है
मुझे अच्छी तरह मालूम है कि
यह रावण मरेगा तो है नहीं
ज़्यादा से ज़्यादा स्थान बदल लेगा
वह राम का कुछ बिगाड़ पाए या नहीं
किन्तु मेरा तो पक्का कबाड़ा कर देगा
अतः रावण हो या राम
हमें तो बस तनख़्वाह से काम
जैसे आम के आम और गुठलियों के दाम
मैं ही नहीं सभी पाखंडी चालें चल रहे हैं
समय के हिसाब से सभी किरदार
अपनी भूमिका बदल रहे हैं
अब विभीषण को ही देखिए
कहने को तो रावण ने उसे लात मारी थी
पर वह उसकी राजनीतिक लाचारी थी
देखना अब विभीषण इतिहास नहीं दोहराएगा
मौका मिलते ही राम की सेना में दंगा करवाएगा
अब कुंभकर्ण भी फालतू नही मरना चाहता
फ़्री की खाता है और
कोई काम भी नहीं करना चाहता
उसे अब नींद की गोली खाने के बाद भी
नींद नहीं आती
फिर भी जबरन सोता है
पर सोते हुए भी लंका की हर गतिविधि से वाकिफ़ होता है
इस बार उसकी भूमिका में भी परिवर्तन हो जाएगा
कुंभकर्ण लड़ेगा नहीं
जागेगा । खाएगा पिएगा और फिर सो जाएगा
अब अंगद में भी
आत्मविश्वास कहाँ से आएगा?
उसे मालूम है कि पैर अब
पूरी तरह जम नहीं पाएगा
कौन जाने भरी सभा के बीच
कब अपने ही लोग टाँग खींच दें
इसलिए उसे हमेशा युवराज बने रहना मंज़ूर नहीं है
यदि बालि कुर्सी छोड़ दे तो दिल्ली दूर नहीं है
वह अपनी सारी नैतिकता को
जमकर दबोच रहा है
आजकल वह बाली को ख़ुद मारने की सोच रहा है
वह राजमुकुट अपने सिर पर धरना चाहता है
और बचा हुआ सुग्रीव का रोल ख़ुद करना चाहता है
बूढ़े जामवंत भी अब थक गए हैं
अपने दल के अनुशासनहीन बंदरों के वक्तव्य सुनकर कान पक गए हैं
अब जामवंत का उपदेश नहीं सुना जाएगा
इस बार दल का नेता
कोई चुस्त चालाक बंदर चुना जाएगा
सुलोचना को भी
भरी जवानी में सती होना पसंद नहीं है
कहती है
साथ जीने का तो है पर मरने का अनुबंध नहीं है
इसलिए अब वह मेघनाद के साथ सती नहीं हो पाएगी
बल्कि उसकी विधवा बनकर
नारी जागरण अभियान चलाएगी
जटायु को भी अपना रोल बेहद खल रहा है
वह भी अपनी भूमिका बदल रहा है
अब वह दूर दूर उड़ेगा
रावण के रास्ते में नहीं आएगा
अपना फर्ज तो निभाएगा पर
अपने पंख नहीं कटवाएगा
मारीच ने भी अपने निगेटिव रोल पर
गंभीरता से विचार किया है
उसने सुरक्षा के लिए
बीच का रास्ता निकाल लिया है
वह सोने का मृग तो बनेगा
पर अन्दर बुलेटप्रूफ जाकिट पहनेगा
राम का बाण लगते ही गिर जाएगा
लक्ष्मण को चिल्लाएगा और धीरे से भाग जाएगा
अभी परसों ही शूर्पनखा की नाक कटी है
बड़ी मुश्किल से
अपनी जिम्मेदारी निभाने से पीछे हटी है
पर भूलकर भी यह मत समझना कि
अब वह दोबारा नहीं आएगी
कटी नाक लेकर अब वह
लंका नहीं सीधे अमेरिका जाएगी
किसी बड़े अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी करवाएगी
और नया चेहरा लेकर फिर एक बार
अपनी भूमिका दोहराएगी
यूँ तो शूर्पनखा के कारनामे जग जाहिर हैं
पर करें क्या
खर और दूषण राम की पकड़ से बाहर हैं
यदि शूर्पनखा से बचना है तो
उसकी नाक नहीं जड़ें काटना होगी
अब लक्ष्मण को बाण नहीं तोप चलानी होगी
ऐसी परिस्थिति में राम को भी
मर्यादा के बंधन छोड़ने पड़ेंगे
रावण को मारना है तो
सारे सिद्धांत छोड़ने पड़ेंगे