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"सभ्यता / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

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‘वे हाथ ’
 
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मूंछों पर ताव देकर
 
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अपने राह चलते अजीज से। </poem>
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13:03, 31 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

सभ्य पद चापों से
जरा हटकर
सड़क के किनारे
किसी गंदे नाले में
अपना ही चेहरा देख कर,
कितने असभ्य हो जाते हैं हम।
अप्ने ही चेहरे पर
पेशाब कर
अपना ही अक्स मिटा डालते हैं।
अहंकार की डकार ले
उलटे पांव
जेब में हाथ डाल
पुन:
सभ्य पद चापों में,
अपनी पदध्वनि
मिला कर हंसते हैं
अपने हम सफ़र की_
आंख में लोग कीचड़ को देख कर।
.... और कितनी शान से
मिलाते हैं हम
‘वे हाथ ’
मूंछों पर ताव देकर
अपने राह चलते अजीज से।