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"दंगे / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

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शहर में आदमी कोई भी नहीं क़त्ल हुआ  
 
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नाम थे लोगों के जो क़त्ल हुए
 
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सर नहीं कटा किसी ने भी कहीं पर कोई  
 
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लोगों ने टोपियाँ काटी थीं, कि जिनमे सर थे
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लोगों ने टोपियाँ काटी थीं, कि जिनमें सर थे
  
 
और ये बहता हुआ, लहू है जो सड़क पर
 
और ये बहता हुआ, लहू है जो सड़क पर
 
सिर्फ आवाजें-ज़बा करते हुए खून गिरा था   
 
सिर्फ आवाजें-ज़बा करते हुए खून गिरा था   
 
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19:31, 23 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

शहर में आदमी कोई भी नहीं क़त्ल हुआ
नाम थे लोगों के जो क़त्ल हुए
सर नहीं कटा किसी ने भी कहीं पर कोई
लोगों ने टोपियाँ काटी थीं, कि जिनमें सर थे

और ये बहता हुआ, लहू है जो सड़क पर
सिर्फ आवाजें-ज़बा करते हुए खून गिरा था