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"आग का अर्थ / विष्णु प्रभाकर" के अवतरणों में अंतर

 
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मेरे बाहर आग है,
 
मेरे बाहर आग है,
 
इस आग का अर्थ जानते हो ?
 
इस आग का अर्थ जानते हो ?
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क्या तपन, क्या दहन,
 
क्या तपन, क्या दहन,
 
क्या ज्योति, क्या जलन,
 
क्या ज्योति, क्या जलन,
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ये अर्थ हैं कोष के, कोषकारों के
 
ये अर्थ हैं कोष के, कोषकारों के
 
जीवन की पाठशाला के नहीं,
 
जीवन की पाठशाला के नहीं,
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जैसे जीवन,
 
जैसे जीवन,
 
वैसे ही आग का अर्थ है,
 
वैसे ही आग का अर्थ है,
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कर सकोगे क्या संघर्ष ?
 
कर सकोगे क्या संघर्ष ?
 
पा सकोगे मुक्ति, माया के मोहजाल से ?
 
पा सकोगे मुक्ति, माया के मोहजाल से ?
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पा सकोगे तो आलोक बिखेरेंगी ज्वालाएँ
 
पा सकोगे तो आलोक बिखेरेंगी ज्वालाएँ
 
नहीं कर सके तो
 
नहीं कर सके तो
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और
 
और
 
आदमीयत के वजूद को
 
आदमीयत के वजूद को
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शेष रह जाएगा, बस वह
 
शेष रह जाएगा, बस वह
 
जो स्वयं नहीं जानता
 
जो स्वयं नहीं जानता
 
कि
 
कि
 
वह है, या नहीं है ।
 
वह है, या नहीं है ।
 +
 
हम
 
हम
 
हम प्रतिभा के वरद पुत्र
 
हम प्रतिभा के वरद पुत्र
 
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
 
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
 
हम दिन भर करते ब्लात्कार
 
हम दिन भर करते ब्लात्कार
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देते उपदेश ब्रह्मचर्य का
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हर संध्या को
  
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हम प्रतिभा के वरद पुत्र
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हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
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हम दिन भर करते पोषण
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जातिवाद का
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निर्विकार निरपेक्ष भाव से
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करते उद्घाटन
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सम्मेलन का
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विरोध में वर्भेगद के
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हर संध्या को
 +
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हम प्रतिभा के वरद पुत्र
 +
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
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हम जनता के चाकर सेवक
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हमें है अधिकार
 +
अपने बुत पुजवाने का
 +
मरने पर
 +
बनवाने का समाधि
 +
पाने को श्रद्धा जनता की ।
 +
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हम जनता के चाकर
 +
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
 +
जनता भूखी मरती है
 +
मरने दो
 +
बंगलों में बैठ हमें
 +
राजसी भोजन करने दो, राजभोग चखने दो
 +
जिससे आने पर अवसर
 +
हम छोड़ कर चावल
 +
खा सकें केक, मुर्ग-मुसल्लम
 +
 +
हम नेताओं के वंशज
 +
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
 +
हम प्रतिपल भजते
 +
रघुपति राघव राजा राम
 +
होते हैं जिसके अर्थ
 +
चोरी हिंसा तेरे नाम
 
</poem>
 
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11:39, 16 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

मेरे उस ओर आग है,
मेरे इस ओर आग है,
मेरे भीतर आग है,
मेरे बाहर आग है,
इस आग का अर्थ जानते हो ?

क्या तपन, क्या दहन,
क्या ज्योति, क्या जलन,
क्या जठराग्नि-कामाग्नि,
नहीं! नहीं!!!
ये अर्थ हैं कोष के, कोषकारों के
जीवन की पाठशाला के नहीं,

जैसे जीवन,
वैसे ही आग का अर्थ है,
संघर्ष,
संघर्ष- अंधकार की शक्तियों से
संघर्ष अपने स्वयं के अहम् से
संघर्ष- जहाँ हम नहीं हैं वहीं बार-बार दिखाने से
कर सकोगे क्या संघर्ष ?
पा सकोगे मुक्ति, माया के मोहजाल से ?

पा सकोगे तो आलोक बिखेरेंगी ज्वालाएँ
नहीं कर सके तो
लपलपाती लपटें-ज्वालामुखियों की
रुद्ररूपां हुंकारती लहरें सातों सागरों की,
लील जाएँगी आदमी
और
आदमीयत के वजूद को

शेष रह जाएगा, बस वह
जो स्वयं नहीं जानता
कि
वह है, या नहीं है ।

हम
हम प्रतिभा के वरद पुत्र
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम दिन भर करते ब्लात्कार
देते उपदेश ब्रह्मचर्य का
हर संध्या को

हम प्रतिभा के वरद पुत्र
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम दिन भर करते पोषण
जातिवाद का
निर्विकार निरपेक्ष भाव से
करते उद्घाटन
सम्मेलन का
विरोध में वर्भेगद के
हर संध्या को

हम प्रतिभा के वरद पुत्र
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम जनता के चाकर सेवक
हमें है अधिकार
अपने बुत पुजवाने का
मरने पर
बनवाने का समाधि
पाने को श्रद्धा जनता की ।

हम जनता के चाकर
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
जनता भूखी मरती है
मरने दो
बंगलों में बैठ हमें
राजसी भोजन करने दो, राजभोग चखने दो
जिससे आने पर अवसर
हम छोड़ कर चावल
खा सकें केक, मुर्ग-मुसल्लम

हम नेताओं के वंशज
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम प्रतिपल भजते
रघुपति राघव राजा राम
होते हैं जिसके अर्थ
चोरी हिंसा तेरे नाम