Last modified on 17 अगस्त 2010, at 01:16

"दोहे-1-10 / अर्जुन कवि" के अवतरणों में अंतर

(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्जुन कवि |संग्रह=दो अक्षर सौ ज्ञान / अर्जुन कव…)
 
छो ("दोहे-1-10 / अर्जुन कवि" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
अर्जुन सब मिल मारिये, बचै जगत इन्सान ।।3।।
 
अर्जुन सब मिल मारिये, बचै जगत इन्सान ।।3।।
  
 +
कुदरत की कारीगरी, चलता सकल जहान ।
 +
सब दुनिया वा की बनी, को का करै बखान ।।4।।
  
 +
रोटी तू छोटी नहीं, तो से बड़ौ न कोय ।
 +
राम नाम तो में बिकै, छोड़ैं सन्त न तोय ।।5।।
 +
 +
हिन्दू तौ हिन्दू जनै, मुस्लिम मुस्लिम जान ।
 +
ना कोऊ मानव जनै, है गौ बाँझ जहान ।।6।।
 +
 +
राज मजब विद्या धनै, घिस गे चारों बाँट ।
 +
मनख न पूरा तुल सका, एक-एक से आँट ।।7।।
 +
 +
राज मजब विद्या धनै, ऊँचे बेईमान ।
 +
भोजन वस्त्र मकान दे, पद नीचौ ईमान ।।8।।
 +
 +
राजा सिंह समान है, चीता मजहब ज्ञान ।
 +
धन बिल्ली-सा छल करै, विद्या बन्दर जान ।।9।।
 +
 +
प्राणदान शक्ती रखै, अर्जुन एक किसान ।
 +
राज मजब विद्या धनै, हैं सब धूरि समान ।।10।।
 
</poem>
 
</poem>

01:16, 17 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

अर्जुन अनपढ़ आदमी, पढ्यौ न काहू ज्ञान ।
मैंने तो दुनिया पढ़ी, जन-मन लिखूँ निदान ।।1।।

ना कोऊ मानव बुरौ, ब्रासत लाख बलाय।
जो हिन्दू ईसा मियाँ, भेद अनेक दिखाय ।।2।।

बस्यौ आदमी में नहीं, ब्रासत में सैतान ।
अर्जुन सब मिल मारिये, बचै जगत इन्सान ।।3।।

कुदरत की कारीगरी, चलता सकल जहान ।
सब दुनिया वा की बनी, को का करै बखान ।।4।।

रोटी तू छोटी नहीं, तो से बड़ौ न कोय ।
राम नाम तो में बिकै, छोड़ैं सन्त न तोय ।।5।।

हिन्दू तौ हिन्दू जनै, मुस्लिम मुस्लिम जान ।
ना कोऊ मानव जनै, है गौ बाँझ जहान ।।6।।

राज मजब विद्या धनै, घिस गे चारों बाँट ।
मनख न पूरा तुल सका, एक-एक से आँट ।।7।।

राज मजब विद्या धनै, ऊँचे बेईमान ।
भोजन वस्त्र मकान दे, पद नीचौ ईमान ।।8।।

राजा सिंह समान है, चीता मजहब ज्ञान ।
धन बिल्ली-सा छल करै, विद्या बन्दर जान ।।9।।

प्राणदान शक्ती रखै, अर्जुन एक किसान ।
राज मजब विद्या धनै, हैं सब धूरि समान ।।10।।