भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पेड़ और भेड़ / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (पेड़ और भेड़ / ओम पुरोहित कागद का नाम बदलकर पेड़ और भेड़ / ओम पुरोहित ‘कागद’ कर दिया गया है)
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’   
 
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’   
|संग्रह=आदमी नहीं हैं / ओम पुरोहित ‘कागद’  
+
|संग्रह=आदमी नहीं है / ओम पुरोहित ‘कागद’  
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}

12:20, 31 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

जब भी
मेरी आंखों में उगते है
नन्हे-नन्हे
हरे-हरे पेड़
मेरे मन को
भीतरी कोने से आ
सब तहस-नहस कर डालती है
कमबख्त एक वहशी भेड़।

तब मैं
हरियाली के तमाम सपने
भूल कर
पालने लगता हूं
वह स्वप्नघाती भेड़
और फिर
कहीं भी
कभी भी
यहां तक कि
सम्भावनाओं तक में
नहीं उग पाता
कोई साध पूरता
मरियल सा भी
हरियल कोई पेड़।

कौन बचना चाहिए
पेड़ या भेड़?
यहीं सवाल
मुझे कचोटता रहता है
और
भेड़ पेड़ को
पेड़ मेरे भीतर को
लगातार
काटता रहता है।