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"भारतीय जनकवि का प्रणाम / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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गोर्की मखीम!
 
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श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
 
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घुल चुकी है तुम्हारी आशीष
 
घुल चुकी है तुम्हारी आशीष
 
 
एशियाई माहौल में
 
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दहक उठा है तभी तो इस तरह वियतनाम ।
 
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अग्रज, तुम्हारी सौवीं वर्षगांठ पर
 
अग्रज, तुम्हारी सौवीं वर्षगांठ पर
 
 
करता है भारतीय जनकवि तुमको प्रणाम ।
 
करता है भारतीय जनकवि तुमको प्रणाम ।
 
  
 
गोर्की मखीम!
 
गोर्की मखीम!
 
 
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
 
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श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
 
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गोर्की मखीम!
 
गोर्की मखीम!
 
  
 
दर-असल'सर्वहारा-गल्प' का
 
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तुम्हीं से हुआ था श्रीगणेश
 
तुम्हीं से हुआ था श्रीगणेश
 
 
निकला था वह आदि-काव्य
 
निकला था वह आदि-काव्य
 
 
तुम्हारी ही लेखनी की नोंक से
 
तुम्हारी ही लेखनी की नोंक से
 
 
जुझारू श्रमिकों के अभियान का...
 
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देखे उसी बुढ़िया ने पहले-पहल
 
देखे उसी बुढ़िया ने पहले-पहल
 
 
अपने आस-पास, नई पीढी के अन्दर
 
अपने आस-पास, नई पीढी के अन्दर
 
 
विश्व क्रान्ति,विश्व शान्ति, विश्व कल्याण ।
 
विश्व क्रान्ति,विश्व शान्ति, विश्व कल्याण ।
 
 
'मां' की प्रतिमा में तुम्ही ने तो भरे थे प्राण ।
 
'मां' की प्रतिमा में तुम्ही ने तो भरे थे प्राण ।
 
  
 
गोर्की मखीम!
 
गोर्की मखीम!
 
 
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
 
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
 
 
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
 
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
 
 
गोर्की मखीम!
 
गोर्की मखीम!
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11:45, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

गोर्की मखीम!
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
घुल चुकी है तुम्हारी आशीष
एशियाई माहौल में
दहक उठा है तभी तो इस तरह वियतनाम ।
अग्रज, तुम्हारी सौवीं वर्षगांठ पर
करता है भारतीय जनकवि तुमको प्रणाम ।

गोर्की मखीम!
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
गोर्की मखीम!

दर-असल'सर्वहारा-गल्प' का
तुम्हीं से हुआ था श्रीगणेश
निकला था वह आदि-काव्य
तुम्हारी ही लेखनी की नोंक से
जुझारू श्रमिकों के अभियान का...
देखे उसी बुढ़िया ने पहले-पहल
अपने आस-पास, नई पीढी के अन्दर
विश्व क्रान्ति,विश्व शान्ति, विश्व कल्याण ।
'मां' की प्रतिमा में तुम्ही ने तो भरे थे प्राण ।

गोर्की मखीम!
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
गोर्की मखीम!