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22:28, 8 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

पहला दिन मेरे आषाढ़ का
सूखे का हुआ कभी
कभी हुआ बाढ़ का
          पहला दिन मेरे आषाढ़ का
नीले आकाश धूल-धुएँ भरे,
दिरकी छाती, रोए घाव हरे;
            टूटे या लगे रहे
            कहकर भी नहीं कहे-
            पीला पत्ता जैसे झाड़ का
बूँदाबाँदी का क्षण उमस भरा,
सूनी माँगें, विधवा वसुंधरा;
            एकाकी भरमाता,
            छाया से कतराता-
            मरुथल में गाछ एक ताड़ का;
पाटों का पता नहीं डूब गए,
घाटों का पता नहीं ऊब गए,
क्या होगा तन का,
            इस मटमैले मन का-
            क्या होगा विष दुखती दाढ़ का
            पहला दिन मेरे आषाढ़ का?