"लोग तुम्हारे वास्ते..... / सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर
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लोग तुम्हारे वास्ते | लोग तुम्हारे वास्ते | ||
− | + | पलकें बिछाते हैं | |
मुस्कुराते हैं | मुस्कुराते हैं | ||
कभी-कभी | कभी-कभी | ||
आकाश के तारे भी | आकाश के तारे भी | ||
तोड़ लाने की बात करते हैं | तोड़ लाने की बात करते हैं | ||
− | + | सिर्फ़ इसलिए | |
− | कि तुम | + | कि तुम ख़ुश रहो |
उन पर | उन पर | ||
अपनी पसंदीदगी की | अपनी पसंदीदगी की | ||
मुहर लगा दो | मुहर लगा दो | ||
और तुम | और तुम | ||
− | ऐसा करते भी हो | + | ऐसा करते भी हो । |
− | तुम्हारा मिलने जुलने का दायरा | + | तुम्हारा मिलने-जुलने का दायरा |
कुछ बढ़ता जा रहा है | कुछ बढ़ता जा रहा है | ||
लेकिन जो घट रहा है | लेकिन जो घट रहा है | ||
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लोगों के कहने पर | लोगों के कहने पर | ||
अपनी पहचान | अपनी पहचान | ||
− | भूल गए हो | + | भूल गए हो । |
कब तक ? | कब तक ? | ||
फिर कोई नवागंतुक | फिर कोई नवागंतुक | ||
लोगों के वोट | लोगों के वोट | ||
− | अपनी | + | अपनी तरफ़ करके |
तुम्हे तुम्हारे सही स्थान पर | तुम्हे तुम्हारे सही स्थान पर | ||
− | वापस | + | वापस पहुँचा देगा । |
उस पल | उस पल | ||
तुम्हे | तुम्हे | ||
− | सहानुभूति या | + | सहानुभूति या सान्त्वना |
− | देने वाला भी नहीं मिलेगा | + | देने वाला भी नहीं मिलेगा । |
मेरी बात छोड़ो | मेरी बात छोड़ो | ||
मैं आज भी | मैं आज भी | ||
उसी मोड़ पर | उसी मोड़ पर | ||
− | + | जहाँ तुम मुझे छोड़कर | |
− | आकाश यात्रा पर | + | आकाश-यात्रा पर गए थे, |
जमीं पर अपने पाँव | जमीं पर अपने पाँव | ||
− | मजबूती से | + | मजबूती से टिकाए |
− | + | खड़ा हूँ । | |
इस प्रतीक्षा में | इस प्रतीक्षा में | ||
कि शायद | कि शायद | ||
कभी तुम नीचे आओ | कभी तुम नीचे आओ | ||
तो स्वयं को | तो स्वयं को | ||
− | अकेला न पाओ</poem> | + | अकेला न पाओ |
+ | </poem> |
13:35, 24 जून 2020 के समय का अवतरण
लोग तुम्हारे वास्ते
पलकें बिछाते हैं
मुस्कुराते हैं
कभी-कभी
आकाश के तारे भी
तोड़ लाने की बात करते हैं
सिर्फ़ इसलिए
कि तुम ख़ुश रहो
उन पर
अपनी पसंदीदगी की
मुहर लगा दो
और तुम
ऐसा करते भी हो ।
तुम्हारा मिलने-जुलने का दायरा
कुछ बढ़ता जा रहा है
लेकिन जो घट रहा है
उसकी कल्पना कभी कि है तुमने?
तुम इस पृथ्वी के
एक निरीह प्राणी थे
अब भी हो
लोग तुम्हे आकाश बना चुके हैं
और तुम
लोगों के कहने पर
अपनी पहचान
भूल गए हो ।
कब तक ?
फिर कोई नवागंतुक
लोगों के वोट
अपनी तरफ़ करके
तुम्हे तुम्हारे सही स्थान पर
वापस पहुँचा देगा ।
उस पल
तुम्हे
सहानुभूति या सान्त्वना
देने वाला भी नहीं मिलेगा ।
मेरी बात छोड़ो
मैं आज भी
उसी मोड़ पर
जहाँ तुम मुझे छोड़कर
आकाश-यात्रा पर गए थे,
जमीं पर अपने पाँव
मजबूती से टिकाए
खड़ा हूँ ।
इस प्रतीक्षा में
कि शायद
कभी तुम नीचे आओ
तो स्वयं को
अकेला न पाओ