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मैं सर्वत जग रोशन कर दूं | मैं सर्वत जग रोशन कर दूं | ||
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10:43, 23 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
आसमान के साए साए
धूप ने क्या क्या रंग दिखाए
ज़ुल्म ने जब भी पर फैलाए
अर्श से उतरे फर्श पे साए
यह पौधे फल-फूल भी देंगे
शर्त है इनको सींचा जाए
सत्य, अहिंसा, भाईचारा
तुम क्या दूर की कौड़ी लाए
हम अंगारों पर बैठे थे
और वो फूले नहीं समाए
तुम तो थे इस आग पे नाजां
खद जलने पर क्यों पछताए
अज्म तो था इस खौफ ने तोड़ा
कौन घास की रोटी खाए
बच्चे सरगोशी करते हैं
इतिहासों को शर्म न आए
चेहरों की मुस्कान से डरिए
रात खड़ी है धूप नहाए
दीवारों तक कान का पहरा
दुश्मन हैं अपने हमसाए
मैं सर्वत जग रोशन कर दूं
कोई तो मेरा हाथ बंटाए
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