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"मुन्द्रे / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
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जब खनक जाता है किनारों से | जब खनक जाता है किनारों से | ||
देर तक गूँजता है कानो में | देर तक गूँजता है कानो में | ||
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और फ़ानूस गुनगुनाते हैं | और फ़ानूस गुनगुनाते हैं | ||
मैंने मुन्द्रों की तरह कानो में | मैंने मुन्द्रों की तरह कानो में | ||
− | तेरी आवाज़ | + | तेरी आवाज़ पहन रक्खी है |
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15:15, 24 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
नीले-नीले से शब के गुम्बद में
तानपुरा मिला रहा है कोई
एक शफ्फाफ़ काँच का दरिया
जब खनक जाता है किनारों से
देर तक गूँजता है कानो में
पलकें झपका के देखती हैं शमएं
और फ़ानूस गुनगुनाते हैं
मैंने मुन्द्रों की तरह कानो में
तेरी आवाज़ पहन रक्खी है