"मौन करुणा / रामकुमार वर्मा" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ, जानता हूँ इस जगत में…) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=रामकुमार वर्मा | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKVID|v=Sl0kIMXrFP8}} | ||
+ | <poem> | ||
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ, | मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ, | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
जानता हूँ इस जगत में फूल की है आयु कितनी, | जानता हूँ इस जगत में फूल की है आयु कितनी, | ||
− | |||
और यौवन की उभरती साँस में है वायु कितनी, | और यौवन की उभरती साँस में है वायु कितनी, | ||
− | |||
इसलिए आकाश का विस्तार सारा चाहता हूँ, | इसलिए आकाश का विस्तार सारा चाहता हूँ, | ||
− | |||
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ, | मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ, | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
प्रश्न-चिह्नों में उठी हैं भाग्य सागर की हिलोरें, | प्रश्न-चिह्नों में उठी हैं भाग्य सागर की हिलोरें, | ||
− | |||
आँसुओं से रहित होंगी क्या नयन की नामित कोरें, | आँसुओं से रहित होंगी क्या नयन की नामित कोरें, | ||
− | |||
जो तुम्हें कर दे द्रवित वह अश्रु धारा चाहता हूँ, | जो तुम्हें कर दे द्रवित वह अश्रु धारा चाहता हूँ, | ||
− | |||
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ, | मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ, | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
जोड़ कर कण-कण कृपण आकाश ने तारे सजाये, | जोड़ कर कण-कण कृपण आकाश ने तारे सजाये, | ||
− | |||
जो कि उज्ज्वल हैं सही पर क्या किसी के काम आये? | जो कि उज्ज्वल हैं सही पर क्या किसी के काम आये? | ||
− | |||
प्राण! मैं तो मार्गदर्शक एक तारा चाहता हूँ, | प्राण! मैं तो मार्गदर्शक एक तारा चाहता हूँ, | ||
− | |||
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ, | मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ, | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
यह उठा कैसा प्रभंजन जुड़ गयी जैसे दिशायें, | यह उठा कैसा प्रभंजन जुड़ गयी जैसे दिशायें, | ||
− | |||
एक तरणी एक नाविक और कितनी आपदाएँ, | एक तरणी एक नाविक और कितनी आपदाएँ, | ||
− | |||
क्या कहूँ मँझधार में ही मैं किनारा चाहता हूँ, | क्या कहूँ मँझधार में ही मैं किनारा चाहता हूँ, | ||
− | + | मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ | |
− | मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ | + | </poem> |
20:01, 9 जून 2020 के समय का अवतरण
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ,
जानता हूँ इस जगत में फूल की है आयु कितनी,
और यौवन की उभरती साँस में है वायु कितनी,
इसलिए आकाश का विस्तार सारा चाहता हूँ,
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ,
प्रश्न-चिह्नों में उठी हैं भाग्य सागर की हिलोरें,
आँसुओं से रहित होंगी क्या नयन की नामित कोरें,
जो तुम्हें कर दे द्रवित वह अश्रु धारा चाहता हूँ,
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ,
जोड़ कर कण-कण कृपण आकाश ने तारे सजाये,
जो कि उज्ज्वल हैं सही पर क्या किसी के काम आये?
प्राण! मैं तो मार्गदर्शक एक तारा चाहता हूँ,
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ,
यह उठा कैसा प्रभंजन जुड़ गयी जैसे दिशायें,
एक तरणी एक नाविक और कितनी आपदाएँ,
क्या कहूँ मँझधार में ही मैं किनारा चाहता हूँ,
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ