"कपड़े के जूते / आलोक धन्वा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | रेल की चमकती हुई पटरियों के किनारे | |
− | रेल की चमकती हुई | + | |
वे कपड़े के पुराने जूते हैं | वे कपड़े के पुराने जूते हैं | ||
एक आदमी उन्हें छोड़कर चला गया | एक आदमी उन्हें छोड़कर चला गया | ||
और एक ही क़दम बाद अदृश्य हो गया | और एक ही क़दम बाद अदृश्य हो गया | ||
− | + | क्योंकि जूतों की दुनिया है सिर्फ़ एक क़दम की | |
− | उस ओर से गुज़र रहे राहगीर का | + | उस ओर से गुज़र रहे राहगीर का |
− | एक | + | एक क़दम पीछा करते हुए |
− | वे कपड़े के पुराने जूते हैं | + | वे कपड़े के पुराने जूते हैं |
उनके भीतर बारिश का पानी ठहर गया है | उनके भीतर बारिश का पानी ठहर गया है | ||
− | हवा | + | हवा तेज़ चलने से बारिश का पानी पैर की तरह हिलता है |
− | लगातार भीगते हुए वे जूते फफूँद से ढँक | + | लगातार भीगते हुए वे जूते फफूँद से ढँक गए हैं |
और ज़मीन की सबसे बारीक सतह पर तो | और ज़मीन की सबसे बारीक सतह पर तो | ||
वे जूते अँकुर भी रहे हैं | वे जूते अँकुर भी रहे हैं | ||
मैं सोच सकता ही हूँ कि | मैं सोच सकता ही हूँ कि | ||
− | कितनी बार खेल के निर्णायक क्षणों में | + | कितनी बार खेल के निर्णायक क्षणों में |
− | ये जूते सूर्य की तरह गर्म हुए होंगे! | + | ये जूते सूर्य की तरह गर्म हुए होंगे ! |
− | इन जूतों के भीतर धूल और पहाड़ों से भरे | + | इन जूतों के भीतर धूल और पहाड़ों से भरे |
− | रास्ते बिखरे हुए हैं | + | रास्ते बिखरे हुए हैं — |
− | आवाजों और मैदानों के भटक | + | आवाजों और मैदानों के भटक गए छोर इन्हें टिकने दे रहे हैं |
− | आवाज़ों और मैदानों के भटक | + | आवाज़ों और मैदानों के भटक गए छोर — |
− | जो आदमी की ज़रूरतों से बाहर रह | + | जो आदमी की ज़रूरतों से बाहर रह गए ! |
इन जूतों के भीतर कितनी बार | इन जूतों के भीतर कितनी बार | ||
आवारा सैलानियों की आत्मा एँ पैरों के सहारे | आवारा सैलानियों की आत्मा एँ पैरों के सहारे | ||
− | नीचे उतरी होंगी | + | नीचे उतरी होंगी — |
महीनों लगातार रही होंगी इन जूतों के भीतर | महीनों लगातार रही होंगी इन जूतों के भीतर | ||
− | आत्माएँ | + | आत्माएँ — |
− | छतों और राज्यों से बाहर- | + | छतों और राज्यों से बाहर -- |
− | समुद्र तल से कितना ऊपर! | + | समुद्र तल से कितना ऊपर ! |
कपड़े के ये जूते | कपड़े के ये जूते | ||
सिगरेट और रूमाल की तरह मुलायम | सिगरेट और रूमाल की तरह मुलायम | ||
सिगरेट और रूमाल की ही तरह हवाओं से भरे | सिगरेट और रूमाल की ही तरह हवाओं से भरे | ||
− | घोंसलों की तरह बुने हुए | + | घोंसलों की तरह बुने हुए — |
− | ये जूते दुनिया में हत्या और | + | ये जूते दुनिया में हत्या और बलात्कार जैसी |
− | ठोस चीज़ों के विरूद्ध | + | ठोस चीज़ों के विरूद्ध |
बहुत तरल हैं | बहुत तरल हैं | ||
घास और भाषा में मुड़ते हुए | घास और भाषा में मुड़ते हुए | ||
− | नमक के क़रीब बढ़ते हुए | + | नमक के क़रीब बढ़ते हुए — |
और चूहों के लिए तो | और चूहों के लिए तो | ||
कपड़े के ये जूते वर्णमाला की तरह हैं | कपड़े के ये जूते वर्णमाला की तरह हैं | ||
− | जहाँ से वे कुतरने की | + | जहाँ से वे कुतरने की शुरुआत करते हैं |
− | जूतों की दुनिया जहाँ से शुरू हुई होगी | + | जूतों की दुनिया जहाँ से शुरू हुई होगी — |
− | गड़रिये वहाँ तक ज़रूर | + | गड़रिये वहाँ तक ज़रूर आए होंगे ! |
− | क्योंकि जूतों के भीतर एक निविड़ता है | + | क्योंकि जूतों के भीतर एक निविड़ता है — |
जो नष्ट नहीं की जा सकती | जो नष्ट नहीं की जा सकती | ||
− | क्योंकि भेड़ों के भीतर एक निविड़ता है आज भी | + | क्योंकि भेड़ों के भीतर एक निविड़ता है आज भी |
जहाँ से समुद्र सुनाई पड़ता है | जहाँ से समुद्र सुनाई पड़ता है | ||
− | और निविड़ता एक ऐसी चीज़ है | + | और निविड़ता एक ऐसी चीज़ है — |
जहाँ नींद के बीज सुरक्षित हैं | जहाँ नींद के बीज सुरक्षित हैं | ||
जूतों की दुनिया जहाँ से शुरू हुई होगी | जूतों की दुनिया जहाँ से शुरू हुई होगी | ||
− | जानवर वहाँ तक जरूर आये | + | जानवर वहाँ तक जरूर आये होंगे । |
जूते-जो प्राचीन हैं | जूते-जो प्राचीन हैं | ||
जिस तरह नावें प्राचीन हैं | जिस तरह नावें प्राचीन हैं | ||
− | चाहे | + | चाहे उन्हें कल ही क्यों न बनाया गया हो |
− | जैसे फल | + | जैसे फल — |
जो जूतों और नावों से भी अधिक प्राचीन हैं | जो जूतों और नावों से भी अधिक प्राचीन हैं | ||
चाहे वे आज की रात ही क्यों न फले हों | चाहे वे आज की रात ही क्यों न फले हों | ||
− | जैसे पाल | + | जैसे पाल — |
जो हमारे कपड़ों से बहुत अधिक प्राचीन दिखते हैं | जो हमारे कपड़ों से बहुत अधिक प्राचीन दिखते हैं | ||
− | लेकिन हमारे कपड़े | + | लेकिन हमारे कपड़े — |
− | जो पालों से बहुत अधिक प्राचीन | + | जो पालों से बहुत अधिक प्राचीन हैं । |
− | और प्राचीनता एक ऐसी चीज़ है | + | और प्राचीनता एक ऐसी चीज़ है — |
जिसे अपने घुटनों में जगह दो | जिसे अपने घुटनों में जगह दो | ||
ताकि ये घुटने किसी तानाशाह के आगे न झुक सकें | ताकि ये घुटने किसी तानाशाह के आगे न झुक सकें | ||
− | क्योंकि भय भी एक प्राचीन चीज़ है | + | क्योंकि भय भी एक प्राचीन चीज़ है — |
लेकिन हथियार भी उतने ही प्राचीन हैं | लेकिन हथियार भी उतने ही प्राचीन हैं | ||
− | और ज़मीन | + | और ज़मीन — |
जो फल से अधिक प्राचीन है | जो फल से अधिक प्राचीन है | ||
− | बीज की तरह प्राचीन | + | बीज की तरह प्राचीन — |
− | और ज़मीन पर चलना | + | और ज़मीन पर चलना — |
जो इतना आसान काम है | जो इतना आसान काम है | ||
फिर भी ज़मीन पर चल रहे आदमी को देखना | फिर भी ज़मीन पर चल रहे आदमी को देखना | ||
− | एक प्राचीन दृश्य को देखना है | + | एक प्राचीन दृश्य को देखना है — |
ज़मीन पर चलना एक इतना आसान काम है | ज़मीन पर चलना एक इतना आसान काम है | ||
− | फिर भी | + | फिर भी |
ज़मीन पर चलने की स्मृति गहन है | ज़मीन पर चलने की स्मृति गहन है | ||
पंक्ति 92: | पंक्ति 92: | ||
वे अब सिर्फ़ कपड़े के पुराने जूते ही नहीं हैं | वे अब सिर्फ़ कपड़े के पुराने जूते ही नहीं हैं | ||
बल्कि वे अब | बल्कि वे अब | ||
− | ऐसे | + | ऐसे धुन्धले और ख़तरनाक रास्ते भी हो चुके हैं — |
जिन पर जासूस भी चलने में असमर्थ हैं | जिन पर जासूस भी चलने में असमर्थ हैं | ||
लेकिन जब तारे छिटकने लगते हैं | लेकिन जब तारे छिटकने लगते हैं | ||
और शाम की टहनियाँ उन पुराने जूतों में भर जाती हैं | और शाम की टहनियाँ उन पुराने जूतों में भर जाती हैं | ||
− | तो उन्हीं | + | तो उन्हीं धुन्धले और ख़तरनाक रास्तों पर स्वप्न के |
सुदूर चक्के तेज़ घूमते हुए आते हैं और | सुदूर चक्के तेज़ घूमते हुए आते हैं और | ||
आदमी की नींद में रोशनी और जड़ें फेंकते हुए | आदमी की नींद में रोशनी और जड़ें फेंकते हुए | ||
− | कहाँ-कहाँ फेंक दी | + | कहाँ-कहाँ फेंक दी गईं ओर छोड़ दी गईं और |
− | बेकार पड़ी चीज़ों को एक | + | बेकार पड़ी चीज़ों को एक |
हरियाली की तरह बटोर लाते हैं ! | हरियाली की तरह बटोर लाते हैं ! | ||
− | जानवर प्रकृति से | + | जानवर प्रकृति से आएर । और दिन भी । |
− | लेकिन जूते प्रकृति से नहीं | + | लेकिन जूते प्रकृति से नहीं आए |
− | जूतों को आदमियों ने बनाया | + | जूतों को आदमियों ने बनाया — |
जिस तरह बाग़ीचों को आदमियों ने बनाया | जिस तरह बाग़ीचों को आदमियों ने बनाया | ||
इस तरह साथ-साथ चलने के लिए | इस तरह साथ-साथ चलने के लिए | ||
− | आदमी ने महान चीज़ें | + | आदमी ने महान चीज़ें बनाईं |
− | और उन महान चीज़ों में जूते आदमी | + | और उन महान चीज़ों में जूते आदमी |
− | के सबसे निकट हैं | + | के सबसे निकट हैं — |
− | जहाज़ से भी अधिक | + | जहाज़ से भी अधिक |
− | सड़कों, रेलों और सीढ़ियों से भी अधिक | + | सड़कों, रेलों और सीढ़ियों से भी अधिक |
कोशिशों और धुनों की तरह | कोशिशों और धुनों की तरह | ||
− | + | निरन्तर प्रवेश चाहते हुए | |
कपड़े के वे जूते इतने पुराने हो चुके हैं | कपड़े के वे जूते इतने पुराने हो चुके हैं | ||
कोई कह सकता है कि | कोई कह सकता है कि | ||
− | जहाँ वे जूते हैं वहाँ कोई समय नहीं है | + | जहाँ वे जूते हैं वहाँ कोई समय नहीं है — |
मृत्यु भी अब उन जूतों को पहनना नहीं चाहेगी | मृत्यु भी अब उन जूतों को पहनना नहीं चाहेगी | ||
लेकिन कवि उसे पहनते हैं | लेकिन कवि उसे पहनते हैं | ||
− | और शताब्दियाँ पार करते हैं! | + | और शताब्दियाँ पार करते हैं ! |
− | + | ||
1979 | 1979 | ||
+ | </poem> |
14:10, 13 जून 2021 के समय का अवतरण
रेल की चमकती हुई पटरियों के किनारे
वे कपड़े के पुराने जूते हैं
एक आदमी उन्हें छोड़कर चला गया
और एक ही क़दम बाद अदृश्य हो गया
क्योंकि जूतों की दुनिया है सिर्फ़ एक क़दम की
उस ओर से गुज़र रहे राहगीर का
एक क़दम पीछा करते हुए
वे कपड़े के पुराने जूते हैं
उनके भीतर बारिश का पानी ठहर गया है
हवा तेज़ चलने से बारिश का पानी पैर की तरह हिलता है
लगातार भीगते हुए वे जूते फफूँद से ढँक गए हैं
और ज़मीन की सबसे बारीक सतह पर तो
वे जूते अँकुर भी रहे हैं
मैं सोच सकता ही हूँ कि
कितनी बार खेल के निर्णायक क्षणों में
ये जूते सूर्य की तरह गर्म हुए होंगे !
इन जूतों के भीतर धूल और पहाड़ों से भरे
रास्ते बिखरे हुए हैं —
आवाजों और मैदानों के भटक गए छोर इन्हें टिकने दे रहे हैं
आवाज़ों और मैदानों के भटक गए छोर —
जो आदमी की ज़रूरतों से बाहर रह गए !
इन जूतों के भीतर कितनी बार
आवारा सैलानियों की आत्मा एँ पैरों के सहारे
नीचे उतरी होंगी —
महीनों लगातार रही होंगी इन जूतों के भीतर
आत्माएँ —
छतों और राज्यों से बाहर --
समुद्र तल से कितना ऊपर !
कपड़े के ये जूते
सिगरेट और रूमाल की तरह मुलायम
सिगरेट और रूमाल की ही तरह हवाओं से भरे
घोंसलों की तरह बुने हुए —
ये जूते दुनिया में हत्या और बलात्कार जैसी
ठोस चीज़ों के विरूद्ध
बहुत तरल हैं
घास और भाषा में मुड़ते हुए
नमक के क़रीब बढ़ते हुए —
और चूहों के लिए तो
कपड़े के ये जूते वर्णमाला की तरह हैं
जहाँ से वे कुतरने की शुरुआत करते हैं
जूतों की दुनिया जहाँ से शुरू हुई होगी —
गड़रिये वहाँ तक ज़रूर आए होंगे !
क्योंकि जूतों के भीतर एक निविड़ता है —
जो नष्ट नहीं की जा सकती
क्योंकि भेड़ों के भीतर एक निविड़ता है आज भी
जहाँ से समुद्र सुनाई पड़ता है
और निविड़ता एक ऐसी चीज़ है —
जहाँ नींद के बीज सुरक्षित हैं
जूतों की दुनिया जहाँ से शुरू हुई होगी
जानवर वहाँ तक जरूर आये होंगे ।
जूते-जो प्राचीन हैं
जिस तरह नावें प्राचीन हैं
चाहे उन्हें कल ही क्यों न बनाया गया हो
जैसे फल —
जो जूतों और नावों से भी अधिक प्राचीन हैं
चाहे वे आज की रात ही क्यों न फले हों
जैसे पाल —
जो हमारे कपड़ों से बहुत अधिक प्राचीन दिखते हैं
लेकिन हमारे कपड़े —
जो पालों से बहुत अधिक प्राचीन हैं ।
और प्राचीनता एक ऐसी चीज़ है —
जिसे अपने घुटनों में जगह दो
ताकि ये घुटने किसी तानाशाह के आगे न झुक सकें
क्योंकि भय भी एक प्राचीन चीज़ है —
लेकिन हथियार भी उतने ही प्राचीन हैं
और ज़मीन —
जो फल से अधिक प्राचीन है
बीज की तरह प्राचीन —
और ज़मीन पर चलना —
जो इतना आसान काम है
फिर भी ज़मीन पर चल रहे आदमी को देखना
एक प्राचीन दृश्य को देखना है —
ज़मीन पर चलना एक इतना आसान काम है
फिर भी
ज़मीन पर चलने की स्मृति गहन है
रेल की चमकती हुई पटरियों के किनारे
वे अब सिर्फ़ कपड़े के पुराने जूते ही नहीं हैं
बल्कि वे अब
ऐसे धुन्धले और ख़तरनाक रास्ते भी हो चुके हैं —
जिन पर जासूस भी चलने में असमर्थ हैं
लेकिन जब तारे छिटकने लगते हैं
और शाम की टहनियाँ उन पुराने जूतों में भर जाती हैं
तो उन्हीं धुन्धले और ख़तरनाक रास्तों पर स्वप्न के
सुदूर चक्के तेज़ घूमते हुए आते हैं और
आदमी की नींद में रोशनी और जड़ें फेंकते हुए
कहाँ-कहाँ फेंक दी गईं ओर छोड़ दी गईं और
बेकार पड़ी चीज़ों को एक
हरियाली की तरह बटोर लाते हैं !
जानवर प्रकृति से आएर । और दिन भी ।
लेकिन जूते प्रकृति से नहीं आए
जूतों को आदमियों ने बनाया —
जिस तरह बाग़ीचों को आदमियों ने बनाया
इस तरह साथ-साथ चलने के लिए
आदमी ने महान चीज़ें बनाईं
और उन महान चीज़ों में जूते आदमी
के सबसे निकट हैं —
जहाज़ से भी अधिक
सड़कों, रेलों और सीढ़ियों से भी अधिक
कोशिशों और धुनों की तरह
निरन्तर प्रवेश चाहते हुए
कपड़े के वे जूते इतने पुराने हो चुके हैं
कोई कह सकता है कि
जहाँ वे जूते हैं वहाँ कोई समय नहीं है —
मृत्यु भी अब उन जूतों को पहनना नहीं चाहेगी
लेकिन कवि उसे पहनते हैं
और शताब्दियाँ पार करते हैं !
1979