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"उसने फूल भेजे हैं / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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वक़्त के खज़ाने से
 
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07:55, 15 जून 2010 के समय का अवतरण

उसने फूल भेजे हैं
फिर मेरी अयादत<ref>शोकमिलन</ref> को
एक-एक पत्ती में
उन लबों की नरमी है
उन जमील<ref>सुन्दर</ref> हाथों की
ख़ुशगवार हिद्दत<ref>उग्रता</ref> है
उन लतीफ़ साँसों की
दिलनवाज़ ख़ुशबू है

दिल में फूल खिलते हैं
रुह में चिराग़ां है
ज़िन्दगी मुअत्तर<ref>सुगंधित</ref> है

फिर भी दिल यह कहता है
बात कुछ बना लेना
वक़्त के खज़ाने से
एक पल चुरा लेना
काश! वो ख़ुद आ जाता


शब्दार्थ
<references/>