भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"स्याह-सफ़ेद / जानकीवल्लभ शास्त्री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
मेरा कोई नहीं इरादा
 
मेरा कोई नहीं इरादा
 
ठोकर मर-मारकर तुमने
 
ठोकर मर-मारकर तुमने
बंजर उर में शूल उगाए
+
बंजर उर में शूल उगाए
 +
 
 
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
 
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
 
मेरा रंग पूछने आए !
 
मेरा रंग पूछने आए !
  
 +
मेरी निंदियारी आँखों का-
 +
कोई स्वप्न नहीं; पाँखों का-
 +
गहन गगन से रहा न नता,
 +
क्यों तुमने तारे तुड़वाए ।
  
 +
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
 +
मेरा रंग पूछने आए !
 +
 +
मेरी बर्फ़ीली आहों का
 +
बुझी धुआँती-सी चाहों का-
 +
क्या था? घर में आग लगाकर
 +
तुमने बाहर दिए जलाए !
 +
 +
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
 +
मेरा रंग पूछने आए !
 
</poem>
 
</poem>

22:45, 25 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

  
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !

मैं अपने में कोरा-सादा
मेरा कोई नहीं इरादा
ठोकर मर-मारकर तुमने
बंजर उर में शूल उगाए ।

स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !

मेरी निंदियारी आँखों का-
कोई स्वप्न नहीं; पाँखों का-
गहन गगन से रहा न नता,
क्यों तुमने तारे तुड़वाए ।

स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !

मेरी बर्फ़ीली आहों का
बुझी धुआँती-सी चाहों का-
क्या था? घर में आग लगाकर
तुमने बाहर दिए जलाए !

स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !