भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एकलड़ी / सत्यनारायण सोनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>तू ही म्हारो काळजो, तू ही म्हारो जीव। घड़ी पलक नहिं आवड़ै, तुझ बि…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>तू ही म्हारो काळजो, तू ही म्हारो जीव।
+
{{KKGlobal}}
घड़ी पलक नहिं आवड़ै, तुझ बिन म्हारा पीव!
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=सत्यनारायण सोनी
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<Poem>
 +
तू ही म्हारो काळजो, तू ही म्हारो जीव ।
 +
घड़ी पलक नहिं आवड़ै, तुझ बिन म्हारा पीव !
  
जब से तुम परदेस गए, गया हमारा चैन।
+
जब से तुम परदेस गए, गया हमारा चैन ।
'कनबतिया' कब मन भरे, तरसण लागे नैन।।
+
'कनबतिया' कब मन भरे, तरसण लागे नैन ।।
  
चैटिंग-चैटिंग तुम करो, वैटिंग-वैटिंग हम्म।
+
चैटिंग-चैटिंग तुम करो, वैटिंग-वैटिंग हम्म ।
चौका-चूल्हा-रार में, गई उमरिया गम्म।।
+
चौका-चूल्हा-रार में, गई उमरिया गम्म ।।
  
सुणो सयाणा सायबा, आ'गी करवा चौथ।
+
सुणो सयाणा सायबा, आ'गी करवा चौथ ।
एकलड़ी रै डील नै, खा'गी करवा चौथ।।
+
एकलड़ी रै डील नै, खा'गी करवा चौथ ।।
  
दीवाळी सूकी गई, गया हमारा नूर।
+
दीवाळी सूकी गई, गया हमारा नूर ।
रोशन किसका घर हुआ, दिया हमारा दूर।।
+
रोशन किसका घर हुआ, दिया हमारा दूर ।।
  
दिप-दिप कर दीवो चस्यो, चस्यो न म्हारो मन्न।
+
दिप-दिप कर दीवो चस्यो, चस्यो न म्हारो मन्न ।
पिव म्हारो परदेस बस्यो, रस्यो न म्हारो तन्न।।
+
पिव म्हारो परदेस बस्यो, रस्यो न म्हारो तन्न ।।
  
रामरमी नै मिल रया, बांथम-बांथां लोग।
+
रामरमी नै मिल रया, बांथम-बांथां लोग ।
थारा-म्हारा साजनां, कद होसी संजोग।।
+
थारा-म्हारा साजनां, कद होसी संजोग ।।
  
म्हैं तो काठी धापगी, मार-मार मिसकाल।
+
म्हैं तो काठी धापगी, मार-मार मिसकाल ।
चुप्पी कीकर धारली, सासूजी रा लाल!
+
चुप्पी कीकर धारली, सासूजी रा लाल !
  
जैपरियै में जा बस्यो, म्हारो प्यारो नाथ।
+
जैपरियै में जा बस्यो, म्हारो प्यारो नाथ ।
सोखी कोनी काटणी, सीयाळै री रात।।
+
सोखी कोनी काटणी, सीयाळै री रात ।।
  
म्हारो प्यारो सायबो, कोमळ-कूंपळ-फूल।
+
म्हारो प्यारो सायबो, कोमळ-कूंपळ-फूल ।
एकलड़ी रै डील में, घणी गडोवै सूळ।।
+
एकलड़ी रै डील में, घणी गडोवै सूळ ।।
  
दिन तो दुख में गूजरै, आथण घणो ऊचाट।
+
दिन तो दुख में गूजरै, आथण घणो ऊचाट ।
एकलड़ी रै डील नै, खावण लागै खाट।।
+
एकलड़ी रै डील नै, खावण लागै खाट ।।
  
पैली चिपटै गाल पर, पछै कुचरणी कान।
+
पैली चिपटै गाल पर, पछै कुचरणी कान ।
माछरियो मनभावणो, म्हारो राखै मान।।
+
माछरियो मनभावणो, म्हारो राखै मान ।।
  
माछर रै इण मान नैं, मानूं कीकर मान।
+
माछर रै इण मान नैं, मानूं कीकर मान ।
एकलड़ी रै कान में, तानां री है तान।।
+
एकलड़ी रै कान में, तानां री है तान ।।
  
थप-थप मांडूं आंगळी, थेपड़ियां में थाप।
+
थप-थप मांडूं आंगळी, थेपड़ियां में थाप ।
तन में तेजी काम री, मन में थारी छाप।।
+
तन में तेजी काम री, मन में थारी छाप ।।
 
+
आज उमंग में आंगणो, नाचै नौ-नौ ताळ।
+
प्रीतम आयो पावणो, सुख बरसैलो साळ।।
+
  
 +
आज उमंग में आंगणो, नाचै नौ-नौ ताळ ।
 +
प्रीतम आयो पावणो, सुख बरसैलो साळ ।।
 
</poem>
 
</poem>

01:13, 31 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

तू ही म्हारो काळजो, तू ही म्हारो जीव ।
घड़ी पलक नहिं आवड़ै, तुझ बिन म्हारा पीव !

जब से तुम परदेस गए, गया हमारा चैन ।
'कनबतिया' कब मन भरे, तरसण लागे नैन ।।

चैटिंग-चैटिंग तुम करो, वैटिंग-वैटिंग हम्म ।
चौका-चूल्हा-रार में, गई उमरिया गम्म ।।

सुणो सयाणा सायबा, आ'गी करवा चौथ ।
एकलड़ी रै डील नै, खा'गी करवा चौथ ।।

दीवाळी सूकी गई, गया हमारा नूर ।
रोशन किसका घर हुआ, दिया हमारा दूर ।।

दिप-दिप कर दीवो चस्यो, चस्यो न म्हारो मन्न ।
पिव म्हारो परदेस बस्यो, रस्यो न म्हारो तन्न ।।

रामरमी नै मिल रया, बांथम-बांथां लोग ।
थारा-म्हारा साजनां, कद होसी संजोग ।।

म्हैं तो काठी धापगी, मार-मार मिसकाल ।
चुप्पी कीकर धारली, सासूजी रा लाल !

जैपरियै में जा बस्यो, म्हारो प्यारो नाथ ।
सोखी कोनी काटणी, सीयाळै री रात ।।

म्हारो प्यारो सायबो, कोमळ-कूंपळ-फूल ।
एकलड़ी रै डील में, घणी गडोवै सूळ ।।

दिन तो दुख में गूजरै, आथण घणो ऊचाट ।
एकलड़ी रै डील नै, खावण लागै खाट ।।

पैली चिपटै गाल पर, पछै कुचरणी कान ।
माछरियो मनभावणो, म्हारो राखै मान ।।

माछर रै इण मान नैं, मानूं कीकर मान ।
एकलड़ी रै कान में, तानां री है तान ।।

थप-थप मांडूं आंगळी, थेपड़ियां में थाप ।
तन में तेजी काम री, मन में थारी छाप ।।

आज उमंग में आंगणो, नाचै नौ-नौ ताळ ।
प्रीतम आयो पावणो, सुख बरसैलो साळ ।।